Thursday, 22 December 2016

तैमुर की छाती में भाला ठोकनें वाले हरवीर गुलिया जी

मै धन्यवाद करता हूँ करीना कपूर को जिसने बेटे का नाम 'तैमुर' रखा।
कम से कम आज इस नाम के साथ भुला दिए गये हरयाणा के शूरवीर योद्धा श्रधेय हरवीर गुलिया तो देशवासियो के दिलो में जिन्दा हुए, जिन्होंने तैमूर लंग की छाती में भाला ठोक एक आतंक को खत्म किया था।
आज देर से सही पर शीस झुकाकर कोटि कोटि नमन है उस परम योद्धा को जिसने भारतीय आन बान और शान का मस्तक ऊँचा किया।
उपप्रधान सेनापति हरबीरसिंह जाट थे जिनका गोत्र गुलिया था। यह हरयाणा के जि० रोहतक गांव बादली के रहने वाले थे। उनकी आयु 22 वर्ष की थी और उनका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।......
उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ। इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया। (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।[1]

सोता शेर.. एक हिन्दू... जग जाओ...

हिन्दुओं तुम्हारी कायरता और अकर्मण्यता जल्द ही तुम्हारे सर्वनाश का कारण बनेगी।
आज जब इस्लाम नाम का राक्षस तुम्हारी बहन बेटियों की ओर मुख खोले बैठा है तब तुम व्यस्त हो केवल पैसा कमाकर कोठियाँ खड़ी करने में।
तब तुम व्यस्त हो केवल धर्म से राजनीतिक लाभ लेने में...
स्मरण रहे धर्म गद्दारों और कायरों को कभी क्षमा नहीं करता।
तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हें धिक्कारेंगीं। तुम्हें याद करके तुम पर देखेंगीं क्योंकि उनकी भयावह स्थिति के कारण तुम होंगें।
जो कासिम, ग़जनवी, गौरी, ख़िलजी, कुतुबुद्दीन ऐबक, जलालुद्दीन ख़िलजी, मौहम्मद तुगलक, तैमूर लंग, सिकंदर लोदी, बाबर, हुमायूँ, शेरशाह, अकबर, जहाँगीर, औरंगज़ेब, बाहादुरशाह ने हिन्दुओं की बहन बेटियों के साथ किया और जो आईएसआईएस ने सीरिया में किया ये ही इस्लाम है और ये ही इस्लाम का सच्चा स्वरूप है जो समस्त हिन्दुस्थानी अपने विश्वासपात्रों द्वारा स्वयं पर होता हुआ देखेंगें।
हो सकता है आप सभी को मेरी ये बातें निराशाजनक लगें क्योंकि आप सब एक लोकतांत्रिक देश के वासी हैं। किंतु स्मरण रहे लोकतंत्र उसके कब्ज़े में होता है जो बाहुल्य होता है।
थोड़े दिन बाद मुसलमान बाहुल्य होकर इस राष्ट्र और इसके राष्ट्रवादियों पर अपने कुकृत्यों का नज़ारा पेश करेंगें।
ये भी निश्चित है कि जल्द ही इस लोकतंत्र पर मुस्लिमों का कब्जा होगा क्योंकि हिन्दू इतना असहाय हो चुका है कि ना ही आवाज़ उठाकर "जनसँख्या नियंत्रण कानून" बनवा सकता है और ना ही बच्चे पैदा कर सकता है।
भगवा रंग की चादर तन पे, अन्तिम वस्त्र हमारा हो,
अन्तिम सफ़र में मैं जब निकलूँ, हर हर महादेव का नारा हो...

Tuesday, 20 December 2016

किसी भी देश का इस्लामीकरण कैसे होता हैं ? 🇸🇦


 _१. मुस्लिम आबादी दर हर गैर इस्लामिक देश में गैर मुसलमानों की तुलना में दुगनी रफ़्तार से बच्चे पैदा करते हैं | जिससे अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती हैं |_
 _२. मुस्लिम आबादी पढाई लिखाई में कोई रूचि नहीं रखती | अंग्रेजी, गणित, विज्ञानं आये ना आये कुरान जरुर बच्चों को पढाई जाती है |_
 _३. मुस्लिम जो व्यवसाय करते हैं वो भी समाज हित के नहीं होते | जैसे बड़े व्यवसायी जो टेनरी चलाते हैं उसकी गंदगी नदियों में बहाते हैं जिस से पानी में आर्सेनिक जैसे जहर की मात्रा बढती जाती हैं |_
 _४. मुस्लिमो की गोस्त की दुकाने आसपास बिमारियां लाती हैं | जानवरों की हत्या अन्न-जल संकट का प्रमुख कारण हैं |_
 _५. जहाँ मुस्लिम अधिक होते हैं वह संगठित तरीके से रहते हैं और आसपास किसी गैर मुस्लिम को बसने नहीं देते | १०० हिन्दुओ के बीच एक मुस्लिम रह सकता हैं पर १०० मुसलमानों के बीच हिंदू नहीं रह सकता |_
 _६. मुस्लिम संगठित होने की वजह से गैर मुसलमानों से बेवजह झगडा करते हैं, अगर आस पास उनकी संपत्ति होती हैं तो उस पर कब्ज़ा कर लेते हैं जैसा की कश्मीर में हुआ |_
 _७. परिवार में अधिक सदस्य होने से और अशिक्षित होने से छोटे संगठित अपराध करते हैं | जैसे की अनाधिकृत कब्जे, बिजली चोरी, नशीले पदार्थो का धंधा करते हैं |_
 _८. ये छोटे अपराधी जल्द ही बड़े अपराधियों से जा मिलते हैं और ये बड़े अपराधी भी कभी ना कभी उन्ही मुस्लिम बस्तियों से निकल कर आये होते हैं | टाइगर मेनन और दाउद इब्राहीम कासकर और ना जाने कितने अपराधी ऊपर उठे |_
 _९. बड़े अपराधी देश की अर्थ व्यवस्था को बिजली चोरी या अतिक्रमण की तरह छोटा मोटा नुक्सान नहीं पहुचाते बल्कि हजारो करोडो का नुक्सान पहुचाते हैं | जैसे स्टाम्प घोटाले व हवाला कांड का प्रमुख अब्दुल करीम तेलगी १०,००० करोड़ व हसन अली ३६,००० करोड़ इत्यादि रकम कमाते हैं और इसे इस्लामिक मुल्को से गैर इस्लामिक देशो में आतंक हत्या के लिए हथियार प्रशिक्षण पर प्रयोग किया जाता हैं |_
 _१०. वे मुस्लिम जो काफ़िर देश में किये गए अपराध लूट पाट को धार्मिक कृत्य मानते हैं वे और भी तरीको से मुस्लिम लड़के गैर-इस्लामिक देश में जंग के लिए तैयार करते हैं | उनमे से एक सरलतम रास्ता जेहाद का हैं काफ़िर का क़त्ल हर मुस्लिम पर अनिवार्य हैं |_
 _११. कुरान पढ़े बेरोजगार लड़के जेहाद के लिए आसानी से तैयार हो जाते हैं बल्कि अपना सौभाग्य समझते हैं और इस्लामिक देशो में मौजूद अपने रहनुमाओ की मदद से जेहादी बनते हैं |_
 _१२. ये जेहादी देश में समय समय पर बम विस्फोट सामूहिक हत्याए वा दंगे करते हैं | दंगो को कुछ लोगो की शरारत कहा जाता हैं जबकि बम विस्फोट पर कहा जाता हैं की इसका इस्लाम और मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं जबकि दोनों ही जेहाद अर्थात धर्मं युद्ध का हिस्सा हैं |_
 _१३. यदि गैर इस्लामी कौमे संगठित होकर धर्मं युद्ध का जवाब देती हैं तो मुस्लिम जोर जोर से हल्ला करना चालु करते हैं के हम पर जुल्म और अत्याचार हो रहा हैं, हम सुरक्षित नहीं इस मुल्क में |_
 _१४. मुसलमानों के संगठित होने की वजह से और हमलावर होने की वजह से नास्तिक राजनैतिक दल मुसलमानों का पक्ष लेने में ही अपनी भलाई समझते हैं जैसे की भारत में कांग्रेस, समाजवादी, कमुनिस्ट दल इत्यादि |_
 _१५. क्योंकि इन दलों का धर्म से, संस्कृति से कोई लेना देना नहीं होता और मुस्लिम समर्थन मिलने पर इन्हें सत्ता का और लालच आ जाता हैं ये मुस्लिम आबादी के बढने में और सहायता करते हैं उनके हर काम में चाहे वो गलत हो या सही, साथ देते हैं |_
 _१६. बांग्लादेश से आये ४ करोड़ मुस्लिमो को कांग्रेस ने ना केवल बसाया अपितु उनको जिस कानून (आई. ऍम. टी. डी. एक्ट) की सहायता से निकाला जा सकता था उसे भी खत्म कर दिया |_
 _१७. आतंकवाद के खिलाफ कानून (पोटा एक्ट) बनाना तो दूर रहा, जो कानून था उसको भी खत्म कर दिया |_
 _१८. मुस्लिम नाराज ना हो इस लिए जेहादियों को उच्चतम न्यायालय से दी हुयी को सजा को भी रोके रखते हैं | जैसा की कांग्रेस ने अफजल गुरु की फ़ासी रोक रखी हैं |_
 _१९. गैर मुस्लिमो के इस कथित सेकुलर वर्ग की इस मूर्खता से मुस्लिम खुश होते हैं और और तेजी से आबादी बढ़ाने का उपाए सोचते हैं|_
 _२०. इन उपायों में गैर मुस्लिम सम्प्रदाये की लड़कियों को प्यार के झूठे जाल में फसाना होता हैं और उनसे बच्चे पैदा करने होते हैं इन्हें लव जेहादी कहते हैं |_
 _२१. अगर ये लव जेहादी ३-४ हिंदू या ईसाई लडकियो को जिन्हें ये वर्गला-फुसला के भगा लाए थे, खिला (वहन) नहीं कर पाते हैं, तो भोग करने के बाद किसी अधेड उम्र के मुस्लिम को बेच देते हैं अधिकतर वह मुस्लिम बदसूरत ही होते हैं इसीलिए उन्हें इस उम्र तक औरते नहीं मिल पाती |_
 _२२. मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ-साथ छोटे-छोटे इस्लामिक क्षेत्रो का भी निर्माण करते हैं | जैसे हिंदू इलाके में अधिक दामों पर कोई एक इमारत खरीद कर लेते हैं और फिर वहा बड़े मुस्लिम परिवार बसा दिए जाते हैं |_
 _२३. ये मुस्लिम लोग आसपास लोगो से आये दिन झगडा करते हैं और धीरे धीरे पडोसियो को अपने घर सस्ते दामों पर किसी मुस्लिम को ही बेचने को मजबूर कर देते हैं इस प्रकार इनकी एक मकान पर खर्च की गयी अतिरिक्त रकम से कही अधिक मुनाफा निकल आता हैं |_
 _२४. मुसलमानों की मस्जिद अक्सर शहर के बीचों-बीच होती हैं ताकि किसी तरह की व्यवस्था बिगडने पर मीनारो की आड़ से पुलिस को देख सके | और जरुरत पड़ने पर खुद पुलिस व्यवस्था पर हमला कर सके |_
 _२५. छोटी मुस्लिम बस्तियाँ ना केवल संगठित होती हैं अपितु हमलावर लोगो से भरी होती हैं | हर घर में देसी तमंचे मिलना सामान्य बात होती हैं |_
 _२६. भारत में नव-निर्मित मुस्लिम बस्तियाँ अक्सर या तो राजमार्गो के किनारे होती हैं या ट्रेन लाइनों के किनारे | राजमार्गो के किनारे बनी मजारो में जिनमे से अधिकतार कुत्ते बिल्लियो की या खाली ही होती हैं हथियार छुपाये रहने की संभावनाओ से इंकार नहीं किया जाता |_
 _२७. यदि गैर-इस्लामिक देश के अगल-बगल में इस्लामिक देश हैं तो समय-समय पर इस्लामिक देश हमला करते रहेंगे जैसा की भारत का पडोसी पाकिस्तान करता रहता है |_
 _२८. ऐसे पडोसी इस्लामिक मुल्क प्रत्यक्ष जीत ना पाने की स्थिति में छदम युद्ध प्रारंभ करते हैं | गैर इस्लामिक मुल्क में मौजूद मुस्लिमो की मदद लेते हैं इस्लामिक एकता के नाम पर |_
 _२९. आबादी में ३० प्रतिशत तक पहुचने पर समय आ जाता मुस्लिमो के लिए के वो काफ़िर देश पर कब्ज़ा कर ले क्यों की संगठित ३०% मत किसी भी लोकतान्त्रिक देश में काफी है सरकार बनाने के लिए या ग्रह युद्ध के माध्यम से कब्ज़ा करने के लिए |_
 _३०. इस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता के मुस्लिम पडोसी देश के साथ मिल जाये और बाहर से हमले के समय अंदर से भी हमला कर दे | युद्ध के समय रेल लाइन उखाड दे, तेल पाइपलाइन तोड़ दे राज मार्ग जाम कर दें इत्यादि ताकि सेना को समय पर रसद ना मिले और वो हार जाये |_
 _३१. सेना के हारते ही विदेशी मुस्लिम गैर-इस्लामिक देश में आ जायेंगे और योगदान के अनुसार देसी मुस्लिमो को सत्ता में हिस्सेदारी दे देंगे क्यों की उनकी जीत में उनका भी बड़ा योगदान होगा |_
 _३२. देश को दारुल हरब से दारुल इस्लाम घोषित कर दिया जायेगा | यानि गैर इस्लामिक देश इस्लामिक देशो में से एक हो जायेगा | गैर इस्लामिक देश में क्या क्या होता हैं ये हमें लिखने की जरुरत नहीं फिर भी हम आगे के लेख में बताएँगे |_
 _लेख समीक्षा : आप उपरोक्त लेख पढ़ कर समझ ही चुके होंगे की भारत इस्लामिक देश बनने की कगार पर हैं | सबसे मूल करण मुस्लिम आबादी का हिन्दुओ ईसाइयों और अन्य सभी से दोगुनी रफ़्तार से बढ़ना हैं | इसका दूसरा प्रमुख कारण है भारत का फर्जी सेकुलरवाद जो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की ओर अग्रसर हैं |आप ये कहे सकते हैं के घोटाले अपराध भ्रष्टाचार में तो हिंदू भी आंगे हैं तो मुस्लिमो को दोष क्यों देना |_
 _हमारा उत्तर हैं के हिंदू भ्रष्टाचार कर के हथियार नहीं खरीदते, ना ही उन हथियारों से वो पाकिस्तान में बम विस्फोट करते हैं ना ही राष्ट्र का ख्याल ना कर के आबादी बढ़ाते हैं |_
 _मुस्लिम हर कदम अपनी कौम को ध्यान में रख के उठाते हैं और उनका अंतिम लक्ष्य होता हैं देश का इस्लामीकरण जबकि भ्रष्ट हिंदू को हिंदू राष्ट्र से कोई लेन देना नहीं !

करीना खान को हुआ बेटा नाम रखा गया तैमुर अली खान, इतिहास जानकर आप दंग रह जाएँगे

तैमूर का जन्म सन् 1336 में ट्रांस-आक्सियाना
(Transoxiana), ट्रांस आमू और सर नदियों के
बीच का प्रदेश, मावराउन्नहर, में केश या शहर-ए-
सब्ज नामक स्थान में हुआ था। उसके पिता ने
इस्लाम कबूल कर लिया था। अत: तैमूर भी
इस्लाम का कट्टर अनुयायी हुआ। वह बहुत ही
प्रतिभावान् और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। महान्
मंगोल विजेता चंगेज खाँ की तरह वह भी समस्त
संसार को अपनी शक्ति से रौंद डालना चाहता था
और सिकंदर की तरह विश्वविजय की कामना रखता
था। सन् 1369 में समरकंद के मंगोल शासक के मर
जाने पर उसने समरकंद की गद्दी पर कब्जा कर
लिया और इसके बाद उसने पूरी शक्ति के साथ
दिग्विजय का कार्य प्रारंभ कर दिया। चंगेज खाँ
की पद्धति पर ही उसने अपनी सैनिक व्यवस्था
कायम की और चंगेज की तरह ही उसने क्रूरता
और निष्ठुरता के साथ दूर-दूर के देशों पर आक्रमण
कर उन्हें तहस नहस किया। 1380 और 1387 के
बीच उसने खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान,
फारस, अजरबैजान और कुर्दीस्तान आदि पर
आक्रमण कर उन्हें अधीन किया। 1393 में उसने
बगदाद को लेकर मेसोपोटामिया पर आधिपत्य
स्थापित किया। इन विजयों से उत्साहित होकर
अब उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय
किया। उसके अमीर और सरदार प्रारंभ में भारत
जैसे दूरस्थ देश पर आक्रमण के लिये तैयार नहीं
थे, लेकिन जब उसने इस्लाम धर्म के प्रचार के
हेतु भारत में प्रचलित मूर्तिपूजा का विध्वंस करना
अपना पवित्र ध्येय घोषित किया, तो उसके अमीर
और सरदार भारत पर आक्रमण के लिये राजी हो
गए।
मूर्तिपूजा का विध्वंस तो आक्रमण का बहाना
मात्र था। वस्तुत: वह भारत के स्वर्ण से
आकृष्ट हुआ। भारत की महान् समृद्धि और वैभव
के बारे में उसने बहुत कुछ बातें सुन रखी थीं। अत:
भारत की दौलत लूटने के लिये ही उसने आक्रमण
की योजना बनाई थी। उसे आक्रमण का बहाना
ढूँढ़ने की अवश्यकता भी नहीं महसूस हुई। उस
समय दिल्ली की तुगलुक सल्तनत फिरोजशाह के
निर्बल उत्तराधिकारियों के कारण शोचनीय
अवस्था में थी। भारत की इस राजनीतिक दुर्बलता
ने तैमूर को भारत पर आक्रमण करने का स्वयं
सुअवसर प्रदान दिया।
1398 के प्रारंभ में तैमूर ने पहले अपने एक पोते
पीर मोहम्मद को भारत पर आक्रमण के लिये
रवाना किया। उसने मुलतान पर घेरा डाला और छ:
महीने बाद उसपर अधिकार कर लिया।
अप्रैल 1398 में तैमूर स्वयं एक भारी सेना लेकर
समरकंद से भारत के लिये रवाना हुआ और सितंबर
में उसने सिंधु, झेलम तथा रावी को पार किया। 13
अक्टूबर को वह मुलतान से 70 मील उत्तर-पूरब
में स्थित तुलुंबा नगर पहुँचा। उसने इस नगर को
लूटा और वहाँ के बहुत से निवासियों को कत्ल
किया तथा बहुतों को गुलाम बनाया। फिर मुलतान
और भटनेर पर कब्जा किया। वहाँ हिंदुओं के अनेक
मंदिर नष्ट कर डाले। भटनेर से वह आगे बढ़ा और
मार्ग के अनेक स्थानों को लूटता-खसोटता और
निवासियों को कत्ल तथा कैद करता हुआ दिसंबर
के प्रथम सप्ताह के अंत में दिल्ली के निकट पहुँच
गया। यहाँ पर उसने एक लाख हिंदू कैदियों को
कत्ल करवाया। पानीपत के पास निर्बल तुगलक
सुल्तान महमूद ने 17 दिसम्बर को 40,000 पैदल
10,000 अश्वारोही और 120 हाथियों की एक
विशाल सेना लेकर तैमूर का मुकाबिला किया लेकिन
बुरी तरह पराजित हुआ। भयभीत होकर तुगलक
सुल्तान महमूद गुजरात की तरफ चला गया और
उसका वजीर मल्लू इकबाल भागकर बारन में जा
छिपा।
दूसरे दिन तैमूर ने दिल्ली नगर में प्रवेश किया।
पाँच दिनों तक सारा शहर बुरी तरह से लूटा-
खसोटा गया और उसके अभागे निवासियों को
बेभाव कत्ल किया गया या बंदी बनाया गया।
पीढ़ियों से संचित दिल्ली की दौलत तैमूर लूटकर
समरकंद ले गया। अनेक बंदी बनाई गई औरतों और
शिल्पियों को भी तैमूर अपने साथ ले गया। भारत
से जो कारीगर वह अपने साथ ले गया उनसे उसने
समरकंद में अनेक इमारतें बनवाईं, जिनमें सबसे
प्रसिद्ध उसकी स्वनियोजित जामा मस्जिद है।
तैमूर भारत में केवल लूट के लिये आया था। उसकी
इच्छा भारत में रहकर राज्य करने की नहीं थी।
अत: 15 दिन दिल्ली में रुकने के बाद वह स्वदेश
के लिये रवाना हो गया। 9 जनवरी 1399 को उसने
मेरठ पर चढ़ाई की और नगर को लूटा तथा
निवासियों को कत्ल किया। इसके बाद वह
हरिद्वार पहुँचा जहाँ उसने आस पास की हिंदुओं
की दो सेनाओं को हराया। शिवालिक पहाड़ियों से
होकर वह 16 जनवरी को कांगड़ा पहुँचा और
उसपर कब्जा किया। इसके बाद उसने जम्मू पर
चढ़ाई की। इन स्थानों को भी लूटा खसोटा गया
और वहाँ के असंख्य निवासियों को कत्ल किया
गया। इस प्रकार भारत के जीवन, धन और
संपत्ति को अपार क्षति पहुँचाने के बाद 19 मार्च
1399 को पुन: सिंधु नदी को पार कर वह
भारतभूमि से अपने देश को लौट गया।
भारत से लौटने के बाद तैमूर से सन् 1400 में
अनातोलिया पर आक्रमण किया और 1402 में
अंगोरा के युद्ध में ऑटोमन तुर्कों को बुरी तरह से
पराजित किया। सन् 1405 में जब वह चीन की
विजय की योजना बनाने में लगा था, उसकी मृत्यु
हो गई।
क्रूर
तैमूर लंग दूसरा चंगेज़ ख़ाँ बनना चाहता था। वह
चंगेज़ का वंशज होने का दावा करता था, लेकिन
असल में वह तुर्क था। वह लंगड़ा था, इसलिए
'तैमूर लंग' (लंग = लंगड़ा) कहलाता था। वह अपने
बाप के बाद सन 1369 ई. में समरकंद का शासक
बना। इसके बाद ही उसने अपनी विजय और
क्रूरता की यात्रा शुरू की। वह बहुत बड़ा
सिपहसलार था, लेकिन पूरा वहशी भी था। मध्य
एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके
थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था। लेकिन
मुसलमानों से पाला पड़ने पर वह उनके साथ जरा
भी मुलायमित नहीं बरतता था। जहाँ-जहाँ वह
पहुँचा, उसने तबाही और बला और पूरी मुसीबत
फैला दी। नर-मुंडों के बड़े-बड़े ढेर लगवाने में उसे
ख़ास मजा आता था। पूर्व में दिल्ली से लगाकर
पश्चिम में एशिया-कोचक तक उसने लाखों आदमी
क़त्ल कर डाले और उनके कटे सिरों को स्तूपों की
शक्ल में जमवाया।
भारत पर आक्रमण
तैमूर का भारत पर आक्रमण
१३९९ ई. में तैमूर का भारत पर भयानक आक्रमण
हुआ। अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में वह कुरान
की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर
काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो
और उन पर सखती बरतो।' वह आगे भारत पर
अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है-
हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय
काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना
है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की
दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें।
काश्मीर की सीमा पर कटोर नामी दुर्ग पर
आक्रमण हुआ। उसने तमाम पुरुषों को कत्ल और
स्त्रियों और बच्चों को कैद करने का आदेश दिया।
फिर उन हठी काफिरों के सिरों के मीनार खड़े करने
के आदेश दिये। फिर भटनेर के दुर्ग पर घेरा डाला
गया। वहाँ के राजपूतों ने कुछ युद्ध के बाद हार
मान ली और उन्हें क्षमादान दे दिया गया। किन्तु
उनके असवाधान होते ही उन पर आक्रमण कर
दिया गया। तैमूर अपनी जीवनी में लिखता है कि
'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के
घाट उतार दिये गये। घंटे भर में १०,००० (दस
हजार) लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार
ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके
सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों
से दुर्ग में इकट्ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने
लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया।
इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया।
दूसरा नगर सरसुती था जिस पर आक्रमण हुआ।
'सभी काफिर हिन्दू कत्ल कर दिये गये। उनके
स्त्री और बच्चे और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर
ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने
अपनी सेना को आदेश दिया कि 'जो भी मिल जाये,
कत्ल कर दिया जाये।' और फिर सेना के सामने जो
भी ग्राम या नगर आया, उसे लूटा गया। पुरुषों को
कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और
बच्चों को बंदी बना लिया गया।'
दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ
मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि
मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी
इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस
समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संखया एक
लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर
आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के
अमीरों ने उससे कहा कि इन बंदियों को कैम्प में
नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं
को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध
होगा। तैमूर लिखता है-
इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन
बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में
घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये
जायें और इस आदेश के पालन में जो भी
लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और
उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये।
जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने
वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला
तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को
कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र
मूर्ति-पूजककाफिर कत्ल कर दिये गये।
तुगलक बादशाह को हराकर तैमूर ने दिल्ली में
प्रवेश किया। उसे पता लगा कि आस-पास के
देहातों से भागकर हिन्दुओं ने बड़ी संख्या में अपने
स्त्री-बच्चों तथा मूल्यवान वस्तुओं के साथ
दिल्ली में शरण ली हुई हैं। उसने अपने सिपाहियों
को इन हिन्दुओं को उनकी संपत्ति समेत पकड़
लेने के आदेश दिये.....

Sunday, 18 December 2016

कुछ हरामखोरो की साजिश पर फिरा पानी,
वो हरामखोर आतंकी ही कहलाये जाने चाहिए और देश को ये सोचना पड़ेगा कि कहीं मोदी सरकार को बदनाम करने की तो साजिश नही जिसके लिए हरामखोर कई लोगो को मौत के हवाले करने से भी नही झिझकते।

घटना 1 दिस रात 2 बजे की है जब देहरादून एक्सप्रेस अपनी पूरी गति से चल रही थी , कोटा के पास 2000 यात्रियों के साथ 100 किमी की रफ़्तार से जिसमे यात्री निश्चितता से सोये हुए थे, उसी रेल ट्रैक पे निरीक्षण करने निकले एक ट्रेकमैन की सतर्कता ने कइयो की जान बचाई, महादेव की कृपा से ट्रेकमैन का ध्यान ट्रैक के उस जगह पे गया जहाँ पटरी को रोक कर रखने के लिए लगे हुए क्लिप ही गायब थे, 1 या दो नहो बल्कि 50 से 60 क्लिप लगातार गायब थे, जिसे देख ट्रैकमैन पुनः उलटी दिशा में 1 किमी दोडता गया और लाल सिग्नल देकर रेल को रुकवाया, गति तेज होने से रेल ठीक उन हटे हुए क्लिप से मात्र कुछ दुरी पर ही रुकी व कई लोगो की जान समय रहते बच गई, अन्यथा क्या होता ये सोच कर ही आत्मा सिहर उठती हे।।
अब सवाल ये है कि  ये षड्यंत्र कोण कर रहा है?
लगातार 50 से 60 क्लिप हटना कोई आसान कार्य नही वो भी रात 2 बजे के करीब, कहीं इस देश की कुछ आतंकी समर्थित पार्टियो का या आतंकियों का षड्यंत्र तो नही मोदी सरकार को बदनाम करने का???
क्या , कुछ समय पूर्व हुए रेल हादसे जिसमे सैकड़ो लोग मारे गए वो भी इसी प्रकार का षड्यंत्र तो नही था???
विचारणीय है कि अब तक जो राजनितिक दल , तुष्टिकरण के लिए आतंकी के रिश्तेदार बन जाते हैं कहीं वो ही इन सबके पीछे तो नही????????
घटना की जानकारी भी मात्र जी न्यूज ही दिखा रहा है, क्या दूसरे चैनल भी पूर्ण रूप से हरामखोर हो गए हैं?
इतना बड़ा षड्यंत्र को वो क्यों नही दिखा रहे?
विचार जरूर करें।

#अल्पसंख्यक कौन ?

#अल्पसंख्यक शब्द का अर्थ होता है कम संख्या में लेकिन क्या भारतीय समाज के धार्मिक ताने-बाने में मुस्लिम समुदाय के लिए यह शब्द सटीक बैठता है? क्या वाकई हिंदुस्तान में जहां मुस्लिमों और अन्य धर्म के लोगों को अल्पसंख्यक माना जाता है, उन्हें अल्पसंख्यक कहना सही है..?
अल्‍पसंख्‍यक’ शब्‍द की परिभाषा हमारे सेक्यूलर संविधान में नही हैं बेशक इसका विवरण संविधान की धाराओं में शामिल है पूर्व यूपीऐ नीत केंद्र सरकार ने यह स्वीकारोक्ति संसद में एक लिखित उत्तर में की हुई है तत्कालीन अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय राज्‍य मंत्री श्री निनॉन्‍ग ईरिंग ने एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया था कि भारतीय संविधान में ‘अल्‍पसंख्‍यक’ शब्‍द का विवरण धारा 29 से लेकर 30 तक और 350ए से लेकर 350बी तक शामिल है। इसकी परिभाषा कहीं भी नहीं दी गई है। भारतीय संविधान की धारा 29 में ‘अल्‍पसंख्‍यक’ शब्‍द को इसके सीमांतर शीर्षक में शामिल तो किया गया किंतु इसमें बताया गया है कि यह नागरिकों का वह हिस्‍सा है, जिसकी भाषा, लिपि अथवा संस्‍कृति भिन्‍न हो यह एक पूरा समुदाय हो सकता है, जिसे सामान्‍य रूप से एक अल्‍पसंख्‍यक अथवा एक बहुसंख्‍यक समुदाय के एक समूह के रूप में देखा जाता है।
भारतीय संविधान की धारा-30 में विशेष तौर पर अल्‍पसंख्‍यकों की दो श्रेणियों – धार्मिक और भाषायी, का उल्‍लेख किया गया है। शेष दो धाराएं – 350ए और 350बी केवल भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों से ही संबंधित हैं।
संविधान निर्माताओं को अल्पसंख्यक आयोग गठन की जरूरत नहीं महसूस हुई राजनीति को इसकी जरूरत थी, सो सरकार ने 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का कानून पारित करवाया ,इस कानून में भी अल्पसंख्यक की मजेदार परिभाषा है-
अल्पसंख्यक वह समुदाय है जो केंद्रीय सरकार अधिसूचित करे.
अर्थात अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार सरकार ने खुद अपने हाथ में ले लिया किसी जाति समूह को अनुसूचित जाति या जनजाति घोषित करने की विधि (अनु. 341 व 342) बड़ी जटिल है यह काम संसद ही कर सकती है लेकिन अल्पसंख्यक घोषित करने का काम सरकारी दफ्तर से ही होने का प्रावधान है..!!
भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पांच धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था, 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिशत 18.42 है  फिर अचानक 27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक आयोग कानून 1992 की धारा 2 के अनुच्‍छेद (ग) के अंतर्गत प्राप्‍त अधि‍कारों का उपयोग करते हुए, जैन समुदाय को भी अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के रूप में अधि‍सूचि‍त कर दि‍या।
वस्तुत: वोट और दल की जिस ब्रिटिश राजनीतिक प्रणाली को हमने अपनाया है, उसमें से भिन्न परिणाम निकलना ही नहीं था,, उस प्रणाली में से निकले राजनीतिक नेतृत्व का विघटनवाद और पृथकतावाद में निहित स्वार्थ पैदा हो गया है, उसी स्वार्थ को सामने रखकर सब संस्थाओं का निर्माण किया जा रहा है, उदाहरण के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग नामक संस्था का विचार कीजिए इस आयोग की स्थापना जनता पार्टी के शासनकाल (1977-79) में हुई थी इस आयोग का मुख्य उद्देश्य था अल्पसंख्यक कहाने वाले वर्गों को क्रमश: एकात्म राष्ट्रीय समाज का अभिन्न अंग बनाना पर, उसने इस दायित्व को निभाने की बजाय अल्पसंख्यकवाद को और गहरा किया, पृथकतावाद की दिशा में धकेला यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री आर.एस. लाहोटी ने एक निर्णय में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भंग करने का सुझाव दिया था और वैसे भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना के बाद ही अल्पसंख्यक आयोग की संवैधानिक व कानूनी प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाती है।
"" हमारे तथाकथित सेक्यूलर संविधान के अनुसार देश की कुल जनसंख्या के 5 प्रतिशत से अधिक वाले समुदाय या वर्ग को अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता तो किस आधार पर हमारी सरकारें मुस्लिमों को अल्पसंख्यक मान उन्हें विशेष रियायत देती हैं..? ""
यह मुद्दा सिर्फ मुस्लिम के साथ ही नहीं बौद्ध, ईसाई पर भी लागू होता है जिन्हें सरकार अल्पसंख्यक मानती है क्योंकि बौद्ध तो हिंदू धर्म अनुसार जातिप्रथा ढो रहे हैं मनुवाद के नाम पर ब्राह्मणों को, सवर्णों को विदेशी कह खुद को मूलनिवासी कह रहे हैं वहीं नेपाल खुद को बुद्ध की जन्मस्थली कह रहा है तो हम अब करें क्या..?
मुसलमान, ईसाई, बौद्ध ये सारे मूलतः विदेशी लोग संविधान की नहीं बल्कि हमारी कमजोरियों का भी भरपूर फायदे ले रहे हैं ... यूँ 100 रू. का स्टांप पर शपथ घोषणापत्र में पूर्व धर्म हिंदू और हिंदू नाम ही लिखवा कर, लिखने व काम लेने की इजाजतें देकर  न्यायालय, व्यवस्था और संविधान इन बौद्धों और विशेषकर 'नवबौद्धों' को पूर्ण रूप से अल्पसंख्यक भी नहीं बनने देता है और ना बहुसंख्यक ही रहने देता है क्योंकि इसका निर्धारण मतलबों आरक्षण तथा धार्मिक धोखाधड़ी के लिये किया जाता है,,ये भाजपा की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार इस धोखाधड़ी को बढाने में सबकी बाप साबित हो रही है शायद...??
एक परिदृश्य राजस्थान के भीलवाड़ा शहर का है हाल ही में संपन्न इस्लामी त्यौहार बारावफात का ... अखबारों में कोनें में प्रदर्शित छोटी सी कोना पकड खबर ही बनी थी खबरी मुद्दा बनने को ...बस!
क्या इस देश में अब “अल्पसंख्यक” शब्दावली को बदलने की जरूरत है..?
जिज्ञासाऐं ....

गीता..... जरूर अध्ययन करें...

कर्म करने पर उसका फल अवश्य प्राप्त होता है                                                                                               श्री मद भगवत गीता -अध्याय दो श्लोक 47 वां                                                                                                 "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |  मा कर्म फल हेतुर्भूर्मा त सगर्डोस्तव कर्मणि | |                                  
ऊपर लिखा
श्लोक सबने पड़ा और सुना होगा | और इसका अर्थ भी जानते है |
आप अभी तक इसका एक ही अर्थ जानते है और वह है
" कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर "
लेकिन जो लोग संस्कृत जानते उन्हें ऊपर लिखे श्लोक का अर्थ मालूम होगा | मेने पूरी गीता जी पड़ ली लेकिन मुझे एक भी श्लोक का यह नहीं मिला |
इसका अर्थ यह है की भगवान श्री कृष्ण ने कभी यह कहा ही  नहीं की " कर्म किये जा ,फल की इच्छा मत कर " 
अब आपको यह पड़  कर झटका लगा होगा और आप सोच रहे होंगे की मै धर्म के विरुद्ध बात कर रहा हुँ |  लेकिन जरा सोचिये किसी ने आप से कहा की गीता जी में भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा कहा और आपने बिना सोचे समझे इसे मान भी लीया | आपने एक बार भी गीता जी पड़ कर उसका अर्थ जानने की कोशिश ही नहीं की | बस किसी ने कहा और मान लिया |  और तो और सड़क किनारे ठेले पर से  एक एक रुपये में  बिकने वाले स्टीकर ले आये और कहते है की ये "गीता का सार" है | बहुत खूब !  ऊपर लिखे श्लोक का अर्थ ज्ञानी और समझदार लोगो के अनुसार "कर्म किये जा ,फल की इच्छा मत कर " है | किन्तु  मुझ नासमझ के अनुसार इसका अर्थ बिलकुल अलग है |
पहले तो मै इसका शाब्दिक अर्थ बता देता हुँ  "तेरा कर्म करने में ही अधिकार हो , उसके फल में कभी नहीं  |  इसलिए तु कर्मो के फल का हेतु मत हो , तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो | |
" श्लोक का अर्थ पड़ कर आपको समझ आ ही गया होगा की आप अभी तक जो सुनते आ रहे थे उसका इससे दुर दुर तक कोई सम्बन्ध नहीं है । अब हम जरा श्लोक की गहराई में जाते है । " तेरा कर्म करने में ही अधिकार हो " भगवान काम करने के अधिकार की बात कर रहे है जबकि व्यक्ति फल पर अधिकार की बात करता है । यहाँ कर्म का अधिकार दो प्रकार से समझ सकते है । पहला यह की यह कार्य मुझे ही करना होगा यानि कार्य की जिम्मेदारी खुद लेना । दूसरा मै किसी कार्य को बहुत अच्छी तरह से कर सकूँ ताकि सभी यही कहे की काम करने का हक़ तो इसे ही है यानि काम में परफेक्ट होना । यदि आप दोनों तरह से इसे स्वीकार कर ले तो आपको फल की चिंता करने की जरुरत नहीं होगी । एक उदहारण देना चाहुँगा यदि कोई student किसी विषय में अच्छी तैयारी कर ले , उस विषय में पारंगत हो जाए तो उसे परीक्षा फल के बारे में चिंता नहीं होगी । यानि कर्म पर अधिकार कर ले तो फल अपने आप ही प्राप्त होगा । या यह कहा जा सकता है की हमारा ध्यान पूर्ण रूप से कार्य पर ही केंद्रित होना चाहिए । श्लोक की दूसरी पंक्ति में लिखा है "तू कर्मो के फल का हेतु मत हो, तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो । " अर्थात कर्म का जो भी फल हो , अच्छा या बुरा तू उसका कारण अपने को मत समझ । भगवान यहाँ कहना चाह रहे है की यदि तू कर्म में सफल हो गया और जब उसका अच्छा फल प्राप्त होगा तो तुम अहंकारी हो सकते हो । जिससे देर सबेर तुम्हे दुःख ही प्राप्त होगा और यदि तुम कर्म में असफल हुए तो तुम ग्लानि से भर जाओगे । तब भी तुम दुःखी ही होओगे । इसलिए तुम कर्म फल का कारण अपने आप को मत मान । साथ ही दुःख के डर से कर्म करना मत छोड़ देना । क्योकि तुझे कर्म तो करना ही पड़ेगा और उसका फल भी अवश्य प्राप्त होगा ।  मै यहाँ गीता जी का एक और श्लोक यहाँ बताना चाहूंगा तो स्तिथि और साफ हो जाएगी । अध्याय -३ श्लोक -८ - " नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो अकर्मणः |  शरीरयत्रपि च ते न प्रसिध्दचेद कर्मणः | "  "तू नियत कर्म कर , क्योकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं होगा । यहाँ भगवान ने स्पष्ट कहा है की कर्म करने से फल प्राप्त होगा और इस कर्म फल से ही तेरा जीवन निर्वाह होगा । तो दोस्तों अब आपको पता हो चुका होगा की  भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में क्या संदेश दिया । अंतः आप सुनी सुनाई एवं भ्रमित करने वाली बातो को छोड़ कर स्वयं संस्कृत सीखे और गीता जी अध्ययन करे ।

आप सभी जरूर पढें ...  आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था! छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था!! बिन हुक्म बलवान तूने ...