काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जिसे मानवीय मुल्य , मालवीय मुल्यों का केन्द्र होना था
जहाँ से राष्ट्र भक्त पैदा हों ये महामना का स्वप्न था
जहाँ से राष्ट्र रत्न पैदा हों ये समय की मांग है
ताकि विभिन्न क्षेत्रों में जाकर जनसेवा , ,राष्ट्रभक्ति का अद्वितीय संदेश दें
महामना कहा करते थे "न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥"
अर्थात
"हे प्रभु! मुझे राज्य की कामना नही, स्वर्ग-सुख की चाहना नही तथा मुक्ति की भी इच्छा नही। एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाये।"
आज उसी विश्वविद्यालय का सर सुंदर लाल चिकित्सालय कुछ डाक्टरों द्वारा लगातार चौथे दिन लाचार होकर बंधक बना पड़ा है
डाक्टर हड़ताल पर है और मरीज बेहाल हैं
अभी कुछ दिनों पुर्व ही मेडिकल छात्रों नें एक छात्र पर जानलेवा हमला किया था जिसके बाद छात्र नें मुकदमा पंजीकृत कराया था
जिसके बाद डाक्टरों ने आरोप लगाया कि छात्रों से उनकी झड़प हुई थी
अब डाक्टरों की मांग ये है कि चोटील छात्र पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए एवं कारवाई की जाए
अब तो ये ऐसा है कि "एक तो चोरी उपर से सीनाजोरी "
पहले छात्र पर जानलेवा हमला किया और अब पीड़ित छात्र पर कारवाई की माँग भी कर रहे हैं
बहिरंग विभाग पर ताले लटक रहे हैं , काश ये ताले डाक्टर साहब लोग बीमारी पर लटका पाते तो कितना अच्छा होता
उस समय तो दवाई पर दवाई और जाँच पर जाँच कराया जाता है
वैसे तो आंदोलन के कई कारण हो सकतें हैं परंतु जमीनी कारण यहीं समझ आ रहा कि इस आंदोलन को लंबा खींचनें एक तात्कालिक लाभ यह है कि पैथोलाजी, अल्ट्रा साऊंड , सहित सभी जाँचों को अस्पताल से बाहर करवा कर कमीशन की मोटी रकम ऐठीं जा जा रही है
उदाहरण के तौर पर अल्ट्रासाउंड की दर अस्पताल में 200 ₹ है वही बाहर में डाक्टर एवं उनके दलालों द्वारा सुझाई गई जाँच 700₹ में हो रही है
डाक्टर साहब कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अस्पताल नहीं आना चाहता
बीमार , कमजोर लोगों पर तो कोर्ट , कानुन भी रहम करता है आप कब रहम करोगे
क्या आपके अंदर की मानवीय संवेदनाएं मर गईं हैं
आप इतनें बेशर्म कैसे हो सकते हैं कि मरीज कराह रहा है और आप दांत नीपोर कर कह रहे हैं कि हम हड़ताल पर हैं
क्या आपके मन में अपनें मेडिकल सुपरिटेण्डेन्ट सहित कुलपति का भी कोई सम्मान नहीं है पहले आप उनसे घोषणा करातें हैं कि हड़ताल खत्म हो गई है और और पुन : हड़ताल शुरू कर देते हैं
इस पुरे मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का भी दोहरा चरित्र देखनें को मिल रहा है एक तरफ अगर आम छात्र का मामला होता है तो प्रशासन तुरंत कारवाई करता है वही अगर मेडिकल छात्र का मामला है तो मुक बना मौन स्वीकृति देता है मै इस प्रशासन से पुछना चाहता हूँ की घटना के समय का CCTV क्यु डीलीट किया गया है एवं इसके पीछे कौन जिम्मेदार है
क्या उक्त जिम्मेदार व्यक्ति पर विश्वविद्यालय ने कोई कारवाई की है ?

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