Sunday, 8 April 2018

#AngryHanuman BAJRANGI

#AngryHanuman
हनुमान जी की एक तस्वीर पर इन दिनों विवाद चलाया जा रहा है। रौद्र रूप में हनुमान जी की इस तस्वीर को नवागत बुद्धिजीवी उग्र राजनैतिक हिन्दुत्व का प्रॉडक्ट बताने की कोशिश में है, और उनका कहना है कि हनुमान जी का इस तरह से चित्रण करके हिन्दू धर्म को गलत दिशा मे ले जाया जा रहा है।

तो सवाल ये है कि रौद्र क्रोधित हनुमान जी की ऐसी तस्वीर को कौन और क्यों गढ़ रहा है.?


  • सनातन धर्मग्रन्थों के मुताबिक हनुमान जी भगवान शंकर के रुद्र रूप के 11वें अवतार हैं। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड में हनुमान का चित्रण है- “अशोषतं मुखं तस्य जृंभमाड़स्य धीमतः। अम्बरीषमिवादीप्तं विधूम इव पावकः॥“  मतलब अपने रौद्र में हनुमान जी ने जंभाई ली तो विकराल रूप में उनका मुंह दहकते हुये अंगारो की तरह था। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमानबाहुक की शुरुआत में लिखा है- “भुज विशाल मूरति कराल कालहु को काल जनु”। मतलब ये कि इतनी विशाल और भीषण हनुमान जी की मूर्ति है जैसे मौत की भी मौत सामने खड़ी हो। इसे पूरा पढ़ेंगे तो बदन में बिजली दौड़ जाएगी। ऐसी कोई रामायण नहीं, कोई पुराण या ग्रंथ नहीं जिसमें हनुमान जी की तस्वीर उनके वीर रूप के बिना पूरी की गयी हो। आधुनिक साहित्य के निराला भी “राम की शक्ति पूजा” हनुमान के रौद्र रूप के बिना पूरी नहीं कर पाये। संस्कृत के तो हजारों श्लोक हैं लेकिन हिन्दी में तुलसी की कवितावली का सुंदरकाण्ड तो पढ़ना ही चाहिए, फिर ये तस्वीर सौम्य नज़र आने लगेगी। 


शक्ति को प्रदर्शित करते हुये देवताओं के ये स्वरूप हर अवतार के साथ मिलेंगे। सदा सौम्य राम को इस रूप में देखना है तो रामायण के लंकाकांड में जाइए, माँ सीता को शक्ति रूप मे देखना है तो अद्भुत रामायण पढ़िये, वंशी बजाते कृष्ण की कराल मूर्ति देखनी है तो गीता का 11वां अध्याय पढ़िये। शिव तो शंकर और संहारक दोनों हैं ही। दुर्गा काली तो शक्ति के तौर पर ही पूजी जाती हैं।

रामधुन गाते मगन हनुमान और गुस्से में दहकते हनुमान दोनों हिन्दू आस्था में क्यों हैं, ये आस्था के इन नवोदित बुद्धिजीवी भाष्यकारों को छोडकर हर कोई जानता है। शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता में श्लोक है- “हनुमान्स महावीरो रामकार्यकरस्सदा। रामदूताभिधो लोके दैत्यघ्नो भक्तवत्सलः।।“ राम के काम में हर समय लगे हनुमान को दो ही काम हैं- मासूमों के लिए रक्षा कृपा और दुष्टों का संहार। यही दार्शनिक आस्था हमारी सोच की बुनियाद में डाली गयी थी कि एक व्यक्ति क्रिएटिव पर्पज़ के लिए हर रूप में आने की क्षमता रखता है।

लेकिन फिर कुछ लोगों को एक तस्वीर से दिक्कत क्यों है?
इसका जवाब संस्कृत का ही एक श्लोक देगा। “विद्याविवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेशाम् परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥“ सिम्पल लैड्ग्वेज मे इसका जिस्ट ये है कि जैंटलमैन के लिए पावर का मतलब होता डिफेंस, और टेररिस्ट के लिए पावर का मतलब है ऑफ़ेन्स.!! यही वजह है  रौद्र रूप में ये हनुमान इन बुद्धिजीवियों को ऑफेंसिव लग रहे और ये ऑफेंड हुये जा रहे हैं.!!

सवाल ये है कि मानवता, दया, अहिंसा जैसे शुगर कोटेड शब्दों की आड़ में पावर और पोटेन्श को केवल ऑफेंसिव तौर पर नैरेट करने की ये कोशिश यहाँ तक कौन लेकर जा रहा है कि आस्था अपने भगवान की तस्वीर कैसे गढ़े, इसमें भी दखल और आपत्ति होने लगी? कल को कहीं ये न कहने लगें कि धनुष, बाण, गदा, तलवार हाथ मे लिए भगवान की तस्वीरों से उग्र हिन्दुत्व पैदा हो रहा है और सेकुलर वैल्यूज़ को खतरा है.!!
ये कुतर्क वामपंथी बौद्धिकता के नैचुरल प्रॉडक्ट हैं। फिर ये मायने नहीं रखता कि ये नैरेशन करने वाले ने मार्क्स को कभी पढ़ा भी या नहीं.! ये एक बौद्धिक संक्रमण है।

अगर सवाल है कि ये संक्रमण क्यों है? तो जवाब है कि समाज की कलेक्टिव मूर्खता और अज्ञानता का ही पैकेज्ड प्रॉडक्ट है लेफ़्ट इंटेलेक्चुअलिज़्म.! अगर आपको पता ही नहीं कि दुनिया में वामपंथ ने 120 मिल्यन लोगों की जान ली हैं तो वामपंथी आपको अहिंसा का पाठ भी पढ़ा ही देंगे.! अगर आपको नहीं पता कि रूस चीन में वामपंथी समानता लाने के लिए बनाए गए कलेक्टिव्स में लाखों लोगों को कत्ल किया गया तो ये बुद्धिजीवी लाल झंडे के नीचे भी सुनहरे सपने दिखा देंगे.! अगर आपने नहीं पढ़ा कि माओ की ग्रेट फ़ैमिन ऑफ चाइना क्या है तो ये बुद्धिजीवी आपको समझा देंगे कि सब गरीबी भुखमरी जेएनयू वालों को जो गाली देते हो उसी वजह से है.! तुम्हें जब पता ही नहीं कि लेनिन स्टालिन ने रूस में जीसस क्राइस्ट की और माओ ने चीन मे कल्चरल रेवोल्यूशन के नाम पर बुद्ध और कन्फ़्यूशियस की कितनी मूर्तियाँ तोड़ी-जलाईं और डैड बॉडीज़ को कब्रों से निकालकर चौराहों पर फांसी से लटकाया तो तुम्हें ये समझा ही दिया जाएगा कि लेनिन की मूर्ति गरीबों की क्रांति की स्मारक थी और उसके टूटने से असहिष्णुता की आँधी आ गई है.! तुमने न माओ की रेड आर्मी के बारे मे पढ़ा न कंबोडिया के नरसंहार के बारे में.! वो सब छोड़ो, तुमने हनुमान चालीसा के आगे अपनी ही आस्था के बारे मे कुछ नही पढ़ा तो जाहिर है उसकी व्याख्या कोई और ही करेगा.!! और तुम डीपी बदलकर बस गालियाँ पोस्ट करोगे.!
#copied

Saturday, 7 April 2018

BHU अस्पताल हड़ताल एवं मालवीय मिशन

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जिसे मानवीय मुल्य , मालवीय मुल्यों का केन्द्र होना था
जहाँ से राष्ट्र भक्त पैदा हों ये महामना का स्वप्न था 
जहाँ से राष्ट्र रत्न पैदा हों ये समय की मांग है 
ताकि विभिन्न क्षेत्रों में जाकर जनसेवा , ,राष्ट्रभक्ति का अद्वितीय संदेश दें 
महामना कहा करते थे "न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥"
अर्थात 
"हे प्रभु! मुझे राज्य की कामना नही, स्वर्ग-सुख की चाहना नही तथा मुक्ति की भी इच्छा नही। एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाये।"
आज उसी विश्वविद्यालय का सर सुंदर लाल चिकित्सालय कुछ डाक्टरों  द्वारा लगातार चौथे दिन लाचार होकर बंधक बना पड़ा है
डाक्टर हड़ताल पर है और मरीज बेहाल हैं 
अभी कुछ दिनों पुर्व ही मेडिकल छात्रों नें एक छात्र पर जानलेवा हमला किया था  जिसके बाद छात्र नें मुकदमा पंजीकृत कराया था
जिसके बाद डाक्टरों ने आरोप लगाया कि छात्रों से उनकी झड़प हुई थी 
अब डाक्टरों की मांग ये है कि चोटील छात्र पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए एवं कारवाई की जाए
अब तो ये ऐसा है कि "एक तो चोरी उपर से सीनाजोरी " 
पहले छात्र पर जानलेवा हमला किया और अब पीड़ित छात्र पर कारवाई की माँग भी कर रहे हैं 
बहिरंग विभाग पर ताले लटक रहे हैं , काश ये ताले डाक्टर साहब लोग बीमारी पर लटका पाते तो कितना अच्छा होता 
उस समय तो दवाई पर दवाई और जाँच पर जाँच कराया जाता है 
वैसे तो आंदोलन के कई कारण हो सकतें हैं परंतु जमीनी कारण यहीं समझ आ रहा कि इस  आंदोलन को लंबा खींचनें एक तात्कालिक  लाभ यह है कि पैथोलाजी, अल्ट्रा साऊंड , सहित सभी जाँचों को अस्पताल से बाहर करवा कर कमीशन की मोटी रकम ऐठीं जा जा रही है
उदाहरण के तौर पर अल्ट्रासाउंड की दर अस्पताल में 200 ₹ है वही बाहर में डाक्टर एवं उनके दलालों द्वारा सुझाई गई जाँच 700₹ में हो रही है 
डाक्टर साहब कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अस्पताल नहीं आना चाहता 
बीमार , कमजोर लोगों पर तो कोर्ट , कानुन भी रहम करता है आप कब रहम करोगे 
क्या आपके अंदर की  मानवीय संवेदनाएं मर गईं हैं  
आप इतनें बेशर्म कैसे हो सकते हैं कि मरीज कराह रहा है और आप दांत नीपोर कर कह रहे हैं कि हम हड़ताल पर हैं 
क्या आपके मन में अपनें मेडिकल सुपरिटेण्डेन्ट सहित कुलपति  का भी कोई सम्मान नहीं है पहले आप उनसे घोषणा  करातें हैं कि हड़ताल खत्म हो गई है और और पुन : हड़ताल शुरू कर देते हैं 
इस पुरे मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का भी दोहरा चरित्र देखनें को मिल रहा है एक तरफ अगर आम छात्र का मामला होता है तो प्रशासन तुरंत कारवाई करता है वही अगर मेडिकल छात्र का मामला है तो मुक बना मौन स्वीकृति देता है मै इस प्रशासन से पुछना चाहता हूँ की घटना के समय का CCTV क्यु डीलीट किया गया है एवं इसके पीछे कौन  जिम्मेदार है
क्या उक्त जिम्मेदार व्यक्ति पर विश्वविद्यालय ने कोई कारवाई की है ?

Friday, 6 April 2018

अब BHU में डाक्टरों की हड़ताल

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मतलब युगदृष्टा भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का वो स्वप्न जो आनें वाले समय में सम्पुर्ण राष्ट्र को दिशा व दशा तय करने को प्रतिबद्ध था
अपनें इसी दुरदर्शिता के परिणाम स्वरूप महामना के विश्वविद्यालय में सर सुन्दर लाल चिकित्सालय बनवाया
जहाँ मेडिकल,पैरामेडिकल के छात्र प्रैक्टिस करें एवं बीमार , लाचार की सेवा कर अपनें अंदर सामाज एवं राष्ट्र सेवा का भाव जागृत कर सकें
साथ ही साथ उन्होने सर सुन्दर लाल अस्पताल के रूप में  गरीब , बीमार पुर्वान्चल के लोगो को एक संजीवनी भी दे दी
किन्तु उन्हे क्या पता था की उनके ही ये मानस पुत्र मुलमंत्र " सेवा " को ही दरकिनार कर देंगें
आज ऐसी ही बानगी अस्पताल में मिली जब मै अपनें पिता जी के इलाज के लिए अस्पताल  पहुंचा
वहाँ पहुचकर देखा की पुरे अस्पताल में भगदड़ मची हूई है मरीज एवं उनकें परिजनों के चेहरे उतरे हुए हैं
बड़ी मशक्कत में बाद मैं काऊंटर पर पहूंचा तो देखा की कुछ मेडिकल के छात्र सीना गर्व से फुलाकर, चेहरे पर दंभ भरी मुस्कान का भाव लिए ,एपेरैन पहनें ,बैग पीठ पर लेकर निकल रहे थे
उनमें एक से मैने पुछा "भैया भगदड़ क्यु मची हुई हैं "
उन्होने कहाँ की "नेट चेक करो BC,
बेबसाईट पर पड़ा हुआ है "
फिर मैने पुछा "आपसब कहाँ जा रहें हैं "
उन्होने कहा कि "बकचोद हो क्या बे ,बोला न बेब पर पड़ा है "
तभी एक पुर्वान्चल के कीसी कोनें से आई एक चाची नें भोजपुरी में कहा कि "बाबू जी ई बेवेसाईट का होला "
हमार बच्चवा के बड़ी जोर के बुखार बा , तनीं देख लीतीं"
साहब के पास कोई जबाब नहीं था सो साहब चलते बनें
तभी रूधते हुए कंठ /भरे हुए गले से चाची बोलीं "सुबहिएं से परेशान बानीं , केहु नईखे सुनत "
यह बोलते ही चाची के आखें में आंसु आ गए
मैने चाची को अपातकाल चिकित्सा की सलाह देकर , वार्ड की तरफ भेज दिया
ये आंसु सिर्फ चाची के ही नीं अपितु पुरे पुर्वान्चल की जनता का है सभी बेबस हैं सभी लाचार हैं
अस्पताल की सुरक्षा में लगे सुरक्षा कर्मी से पुछा तो पता चला की हड़ताल हुई है
मामला ये था कि विश्वविद्यालय के कुछ छात्र एवं मेडिकल के छात्रों के बीच विवाद हुआ एवं उसके बाद मेडिकल के छात्रों नें उस छात्र को मारा जिससे उस छात्र का सिर फट गया
आज उसी विवाद में अपनी स्थिति को मजबुत करनें के उद्देश्य के साथ ही हड़ताल की गई हैं बात तो दो गुटों या कुछ छात्रों के बीच की है लेकिन खुली गुंडागर्दी का आलम ये है की  अस्पताल बंद है और उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड की गरीब बेबस जनता परेशान है
डाक्टर साहब धीरे धीरे गुड़े के रूप में तब्दील होते जा रहे है
सोचनीय विषय ये है कि बीएचयु में 5 संस्थान एवं 16 संकायों के 32000 छात्रों में सिर्फ एक ही संस्थान एवं 1 ही संकाय के छात्रों से हमेशा झगड़े क्यु होते रहे हैं
जमीनी हकीकत ये है कि डाक्टर साहब लोग कई बार मेडिकल एक्ट का धौंस भी झाड़ते हुए पाए जाते हैं
एक उदाहरण डाक्टर मीत मिनारे का भी है जिनका छात्रों, स्टाफ से हमेशा विवाद रहा
उनके उपर मारपीट के कई मामले भी दर्ज रहे
अतत: छात्रों के आंदोलन एवं संघर्षों के बाद संस्थान से निकाला गया
अतत: मै यही कहना चाहूंगा कि
अब मानव तन हैं तो रोग,व्याध तो होगा ही और गरीब भी है सो महंगे-महंगे अस्पतालों में इलाज नहीं करा सकते
इन्ही गरीब लोगों की संजीवनी सर सुदंरलाल अस्पताल का ये हाल है तो फिर गरीब कहाँ जाऐं ?
और डाक्टर साहब लोग आपसे एक नम्र निवेदन है कि कृपया अपनें हड़लात की सुचना पुर्व में ही अखबारों में  निकलवा दें ताकि पुर्वान्चल समेत अन्य जनता बेवजह परेशान न हो

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