#AngryHanuman
हनुमान जी की एक तस्वीर पर इन दिनों विवाद चलाया जा रहा है। रौद्र रूप में हनुमान जी की इस तस्वीर को नवागत बुद्धिजीवी उग्र राजनैतिक हिन्दुत्व का प्रॉडक्ट बताने की कोशिश में है, और उनका कहना है कि हनुमान जी का इस तरह से चित्रण करके हिन्दू धर्म को गलत दिशा मे ले जाया जा रहा है।
तो सवाल ये है कि रौद्र क्रोधित हनुमान जी की ऐसी तस्वीर को कौन और क्यों गढ़ रहा है.?
शक्ति को प्रदर्शित करते हुये देवताओं के ये स्वरूप हर अवतार के साथ मिलेंगे। सदा सौम्य राम को इस रूप में देखना है तो रामायण के लंकाकांड में जाइए, माँ सीता को शक्ति रूप मे देखना है तो अद्भुत रामायण पढ़िये, वंशी बजाते कृष्ण की कराल मूर्ति देखनी है तो गीता का 11वां अध्याय पढ़िये। शिव तो शंकर और संहारक दोनों हैं ही। दुर्गा काली तो शक्ति के तौर पर ही पूजी जाती हैं।
रामधुन गाते मगन हनुमान और गुस्से में दहकते हनुमान दोनों हिन्दू आस्था में क्यों हैं, ये आस्था के इन नवोदित बुद्धिजीवी भाष्यकारों को छोडकर हर कोई जानता है। शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता में श्लोक है- “हनुमान्स महावीरो रामकार्यकरस्सदा। रामदूताभिधो लोके दैत्यघ्नो भक्तवत्सलः।।“ राम के काम में हर समय लगे हनुमान को दो ही काम हैं- मासूमों के लिए रक्षा कृपा और दुष्टों का संहार। यही दार्शनिक आस्था हमारी सोच की बुनियाद में डाली गयी थी कि एक व्यक्ति क्रिएटिव पर्पज़ के लिए हर रूप में आने की क्षमता रखता है।
लेकिन फिर कुछ लोगों को एक तस्वीर से दिक्कत क्यों है?
इसका जवाब संस्कृत का ही एक श्लोक देगा। “विद्याविवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेशाम् परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥“ सिम्पल लैड्ग्वेज मे इसका जिस्ट ये है कि जैंटलमैन के लिए पावर का मतलब होता डिफेंस, और टेररिस्ट के लिए पावर का मतलब है ऑफ़ेन्स.!! यही वजह है रौद्र रूप में ये हनुमान इन बुद्धिजीवियों को ऑफेंसिव लग रहे और ये ऑफेंड हुये जा रहे हैं.!!
सवाल ये है कि मानवता, दया, अहिंसा जैसे शुगर कोटेड शब्दों की आड़ में पावर और पोटेन्श को केवल ऑफेंसिव तौर पर नैरेट करने की ये कोशिश यहाँ तक कौन लेकर जा रहा है कि आस्था अपने भगवान की तस्वीर कैसे गढ़े, इसमें भी दखल और आपत्ति होने लगी? कल को कहीं ये न कहने लगें कि धनुष, बाण, गदा, तलवार हाथ मे लिए भगवान की तस्वीरों से उग्र हिन्दुत्व पैदा हो रहा है और सेकुलर वैल्यूज़ को खतरा है.!!
ये कुतर्क वामपंथी बौद्धिकता के नैचुरल प्रॉडक्ट हैं। फिर ये मायने नहीं रखता कि ये नैरेशन करने वाले ने मार्क्स को कभी पढ़ा भी या नहीं.! ये एक बौद्धिक संक्रमण है।
अगर सवाल है कि ये संक्रमण क्यों है? तो जवाब है कि समाज की कलेक्टिव मूर्खता और अज्ञानता का ही पैकेज्ड प्रॉडक्ट है लेफ़्ट इंटेलेक्चुअलिज़्म.! अगर आपको पता ही नहीं कि दुनिया में वामपंथ ने 120 मिल्यन लोगों की जान ली हैं तो वामपंथी आपको अहिंसा का पाठ भी पढ़ा ही देंगे.! अगर आपको नहीं पता कि रूस चीन में वामपंथी समानता लाने के लिए बनाए गए कलेक्टिव्स में लाखों लोगों को कत्ल किया गया तो ये बुद्धिजीवी लाल झंडे के नीचे भी सुनहरे सपने दिखा देंगे.! अगर आपने नहीं पढ़ा कि माओ की ग्रेट फ़ैमिन ऑफ चाइना क्या है तो ये बुद्धिजीवी आपको समझा देंगे कि सब गरीबी भुखमरी जेएनयू वालों को जो गाली देते हो उसी वजह से है.! तुम्हें जब पता ही नहीं कि लेनिन स्टालिन ने रूस में जीसस क्राइस्ट की और माओ ने चीन मे कल्चरल रेवोल्यूशन के नाम पर बुद्ध और कन्फ़्यूशियस की कितनी मूर्तियाँ तोड़ी-जलाईं और डैड बॉडीज़ को कब्रों से निकालकर चौराहों पर फांसी से लटकाया तो तुम्हें ये समझा ही दिया जाएगा कि लेनिन की मूर्ति गरीबों की क्रांति की स्मारक थी और उसके टूटने से असहिष्णुता की आँधी आ गई है.! तुमने न माओ की रेड आर्मी के बारे मे पढ़ा न कंबोडिया के नरसंहार के बारे में.! वो सब छोड़ो, तुमने हनुमान चालीसा के आगे अपनी ही आस्था के बारे मे कुछ नही पढ़ा तो जाहिर है उसकी व्याख्या कोई और ही करेगा.!! और तुम डीपी बदलकर बस गालियाँ पोस्ट करोगे.!
#copied
हनुमान जी की एक तस्वीर पर इन दिनों विवाद चलाया जा रहा है। रौद्र रूप में हनुमान जी की इस तस्वीर को नवागत बुद्धिजीवी उग्र राजनैतिक हिन्दुत्व का प्रॉडक्ट बताने की कोशिश में है, और उनका कहना है कि हनुमान जी का इस तरह से चित्रण करके हिन्दू धर्म को गलत दिशा मे ले जाया जा रहा है।
तो सवाल ये है कि रौद्र क्रोधित हनुमान जी की ऐसी तस्वीर को कौन और क्यों गढ़ रहा है.?
- सनातन धर्मग्रन्थों के मुताबिक हनुमान जी भगवान शंकर के रुद्र रूप के 11वें अवतार हैं। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड में हनुमान का चित्रण है- “अशोषतं मुखं तस्य जृंभमाड़स्य धीमतः। अम्बरीषमिवादीप्तं विधूम इव पावकः॥“ मतलब अपने रौद्र में हनुमान जी ने जंभाई ली तो विकराल रूप में उनका मुंह दहकते हुये अंगारो की तरह था। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमानबाहुक की शुरुआत में लिखा है- “भुज विशाल मूरति कराल कालहु को काल जनु”। मतलब ये कि इतनी विशाल और भीषण हनुमान जी की मूर्ति है जैसे मौत की भी मौत सामने खड़ी हो। इसे पूरा पढ़ेंगे तो बदन में बिजली दौड़ जाएगी। ऐसी कोई रामायण नहीं, कोई पुराण या ग्रंथ नहीं जिसमें हनुमान जी की तस्वीर उनके वीर रूप के बिना पूरी की गयी हो। आधुनिक साहित्य के निराला भी “राम की शक्ति पूजा” हनुमान के रौद्र रूप के बिना पूरी नहीं कर पाये। संस्कृत के तो हजारों श्लोक हैं लेकिन हिन्दी में तुलसी की कवितावली का सुंदरकाण्ड तो पढ़ना ही चाहिए, फिर ये तस्वीर सौम्य नज़र आने लगेगी।
शक्ति को प्रदर्शित करते हुये देवताओं के ये स्वरूप हर अवतार के साथ मिलेंगे। सदा सौम्य राम को इस रूप में देखना है तो रामायण के लंकाकांड में जाइए, माँ सीता को शक्ति रूप मे देखना है तो अद्भुत रामायण पढ़िये, वंशी बजाते कृष्ण की कराल मूर्ति देखनी है तो गीता का 11वां अध्याय पढ़िये। शिव तो शंकर और संहारक दोनों हैं ही। दुर्गा काली तो शक्ति के तौर पर ही पूजी जाती हैं।
रामधुन गाते मगन हनुमान और गुस्से में दहकते हनुमान दोनों हिन्दू आस्था में क्यों हैं, ये आस्था के इन नवोदित बुद्धिजीवी भाष्यकारों को छोडकर हर कोई जानता है। शिवपुराण की शतरुद्रसंहिता में श्लोक है- “हनुमान्स महावीरो रामकार्यकरस्सदा। रामदूताभिधो लोके दैत्यघ्नो भक्तवत्सलः।।“ राम के काम में हर समय लगे हनुमान को दो ही काम हैं- मासूमों के लिए रक्षा कृपा और दुष्टों का संहार। यही दार्शनिक आस्था हमारी सोच की बुनियाद में डाली गयी थी कि एक व्यक्ति क्रिएटिव पर्पज़ के लिए हर रूप में आने की क्षमता रखता है।
लेकिन फिर कुछ लोगों को एक तस्वीर से दिक्कत क्यों है?
इसका जवाब संस्कृत का ही एक श्लोक देगा। “विद्याविवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेशाम् परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥“ सिम्पल लैड्ग्वेज मे इसका जिस्ट ये है कि जैंटलमैन के लिए पावर का मतलब होता डिफेंस, और टेररिस्ट के लिए पावर का मतलब है ऑफ़ेन्स.!! यही वजह है रौद्र रूप में ये हनुमान इन बुद्धिजीवियों को ऑफेंसिव लग रहे और ये ऑफेंड हुये जा रहे हैं.!!
सवाल ये है कि मानवता, दया, अहिंसा जैसे शुगर कोटेड शब्दों की आड़ में पावर और पोटेन्श को केवल ऑफेंसिव तौर पर नैरेट करने की ये कोशिश यहाँ तक कौन लेकर जा रहा है कि आस्था अपने भगवान की तस्वीर कैसे गढ़े, इसमें भी दखल और आपत्ति होने लगी? कल को कहीं ये न कहने लगें कि धनुष, बाण, गदा, तलवार हाथ मे लिए भगवान की तस्वीरों से उग्र हिन्दुत्व पैदा हो रहा है और सेकुलर वैल्यूज़ को खतरा है.!!
ये कुतर्क वामपंथी बौद्धिकता के नैचुरल प्रॉडक्ट हैं। फिर ये मायने नहीं रखता कि ये नैरेशन करने वाले ने मार्क्स को कभी पढ़ा भी या नहीं.! ये एक बौद्धिक संक्रमण है।
अगर सवाल है कि ये संक्रमण क्यों है? तो जवाब है कि समाज की कलेक्टिव मूर्खता और अज्ञानता का ही पैकेज्ड प्रॉडक्ट है लेफ़्ट इंटेलेक्चुअलिज़्म.! अगर आपको पता ही नहीं कि दुनिया में वामपंथ ने 120 मिल्यन लोगों की जान ली हैं तो वामपंथी आपको अहिंसा का पाठ भी पढ़ा ही देंगे.! अगर आपको नहीं पता कि रूस चीन में वामपंथी समानता लाने के लिए बनाए गए कलेक्टिव्स में लाखों लोगों को कत्ल किया गया तो ये बुद्धिजीवी लाल झंडे के नीचे भी सुनहरे सपने दिखा देंगे.! अगर आपने नहीं पढ़ा कि माओ की ग्रेट फ़ैमिन ऑफ चाइना क्या है तो ये बुद्धिजीवी आपको समझा देंगे कि सब गरीबी भुखमरी जेएनयू वालों को जो गाली देते हो उसी वजह से है.! तुम्हें जब पता ही नहीं कि लेनिन स्टालिन ने रूस में जीसस क्राइस्ट की और माओ ने चीन मे कल्चरल रेवोल्यूशन के नाम पर बुद्ध और कन्फ़्यूशियस की कितनी मूर्तियाँ तोड़ी-जलाईं और डैड बॉडीज़ को कब्रों से निकालकर चौराहों पर फांसी से लटकाया तो तुम्हें ये समझा ही दिया जाएगा कि लेनिन की मूर्ति गरीबों की क्रांति की स्मारक थी और उसके टूटने से असहिष्णुता की आँधी आ गई है.! तुमने न माओ की रेड आर्मी के बारे मे पढ़ा न कंबोडिया के नरसंहार के बारे में.! वो सब छोड़ो, तुमने हनुमान चालीसा के आगे अपनी ही आस्था के बारे मे कुछ नही पढ़ा तो जाहिर है उसकी व्याख्या कोई और ही करेगा.!! और तुम डीपी बदलकर बस गालियाँ पोस्ट करोगे.!
#copied


