Sunday, 24 December 2017

कुर्बानी


आओ आपको क़ुरबानी की एक ऐसी मिसाल से अवगत करवाते हैं जो दुनियां में शायद ही कहीं मिले:



21 दिसंबर:

 श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।



22 दिसंबर:

 गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।

.....
 चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।



 23 दिसंबर

 गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों ग्रिफ्तार करवा दिया गया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।



24 दिसंबर

 तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।



25 और 26 दिसंबर:

 छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।



27 दिसंबर:

साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र महज 8 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह उम्र महज 6 वर्ष को तमाम जुल्म ओ जब्र उपरांत जिंदा दीवार में चीनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।




#अब निर्णय आप करो कि
25 दिसंबर (क्रिसमस) को तवज्जो मिलनी चाहिए
या
क़ुरबानी की अनोखी और शायद दुनिया की इकलौती मिसाल को?


Saturday, 23 December 2017

इतिहास बयान करते हैं "इलाहाबाद" के पुराने मोहल्ले


एक रशियन दार्शनिक सोरोवस्की का विचार है कि यदि किसी नगर, स्थान या क्षेत्र का इतिहास जानना हो तो पहले उसके नाम का इतिहास जानें, क्योंकि नाम उसकी ऐतिहासिकता का प्रतीक होता है।

इलाहाबाद शहर के पुराने मोहल्लों का नामकरण कैसे हुआ, इस पर गौर करें तो यह बात पूरी तरह सही साबित होती है, क्योंकि ये नाम इतिहास बयान करते हैं। मुट्ठीगंज, कीडगंज, रामबाग, चौक, खुल्दाबाद, जानसेनगंज, गढ़ीसराय, सरायमीर खां, शाहगंज, रोशनबाग, अहियापुर, कटरा, सिविल लाइंस, ममफोर्डगंज आदि बहुत पहले आबाद हुए मोहल्ले हैं। शहर लंबे समय तक मुगलों और अंग्रेजों की हुकूमत में रहा। यहां के पुराने मोहल्ले में से कुछ मुगलों के बसाए हैं तो कुछ अंग्रेजों के। इनकी तह में जाएं तो अतीत की कई अनछुई दास्तानें परत दर परत खुलती हैं।

सौ बरस पहले के और अब के इलाहाबाद में जमीन आसमान का अंतर है। आज का भीड़भाड़ वाला चौक इलाका सौ साल पहले एक साधारण गांव जैसा था। यहां मुगलों के समय की बनीं दो सराएं थीं, खुल्दाबाद सराय और गढ़ी सराय। शहर के सबसे खास कारोबारी इलाकों में शुमार मुट्ठीगंज का नाम अंग्रेजी हुकूमत के पहले कलेक्टर मिस्टर आर. अहमुटी के नाम पर पड़ा। जबकि शहर की पहचान माने जाने वाले पंडों व प्रयागवालों के परंपरागत क्षेत्र कीडगंज का नाम किले के अंग्रेज कमांडेंट जनरल कीड के नाम पर पड़ा। मुगल शासक शाहजहां का बड़ा लड़का दारा शिकोह था, जिसके नाम पर दारागंज मोहल्ला आबाद हुआ।

ईस्वी सन 1906 के आसपास संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल मिस्टर जेम्स डिग्स लाटूश ने स्टेशन के आगे सरकारी कर्मचारियों के रहने के लिए एक मोहल्ला बसाया, जिसका नाम उन्होंने गवर्नमेंट प्रेस के तत्कालीन सुपरिटेंडेंट मिस्टर एफ. लूकर के नाम पर लूकरगंज रखा। इलाहाबाद आर्कियोलॉजिकल सोसायटी के लिए हिंदुस्तानी एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप में डॉ. सालिग्राम श्रीवास्तव ने चौक व इसके आसपास के इलाकों की तत्कालीन दशा पर लिखा - ' जहां आज चौक मोहल्ला है, वहां चारों ओर कच्चे घर थे। कोई-कोई मकान पक्के और कुछ बिना प्लास्टर की पक्की ईंटों के बने थे। बीच में एक पक्की गड़ही थी, जिसमें आस-पास का पानी इकट्ठा होता था तथा कूड़ा-करकट फेंका जाता था। लोग उसे लाल डिग्गी कहते थे। उसके किनारे कुछ बिसाती, कुंजड़े और अन्य छोटे-छोटे दुकानदार चबूतरों पर बैठते थे। जांस्टनगंज घनी बस्ती थी। चौक से कटरे की ओर जाने के लिए ठठेरी बाजार, शाहगंज, लीडर रोड का रास्ता था।'

1864 के आसपास जिले के कलेक्टर मि. विलियम जांस्टन ने चौक की पुरानी बस्ती की जगह नया बाजार व पक्की सड़क बनवाई थी, जिसे जांस्टनगंज कहा जाने लगा। चौक में जहां बरामदा के नाम से सौंदर्य प्रसाधन की दुकानें हैं, वहां पहले एक विशाल कुआं था। इसके ठीक सामने गिरजाघर के पास नीम के सात पेड़ों का समूह था, जिन पर अंग्रेजी पुलिस क्रांतिकारियों को फांसी देती थी और कुएं में दफन कर देती थी। 1873 में लाल डिग्गी की गड़ही को शहर के माने हुए रईस बाबू रामेश्वर राय चौधरी ने पटवाकर सब्जी मंडी बनवाई। बाबू साहब कचहरी के प्रसिद्ध गुमाश्ता थे। सब्जी मंडी के पास ही यहां की मशहूर तवायफ जानकी बाई इलाहाबादी उर्फ छप्पन छूरी की कोठी थी।

1874 में कोतवाली बनी। कोतवाली के पीछे रानी मंडी है, जिसका नामकरण इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की शुरुआत की याद में रखा गया। रानी मंडी व भारतीय भवन पुस्तकालय के पीछे पहले एक पठार था, जिसे खुशहाल पर्वत कहा जाता था। इसी नाम से वहां पर एक बस्ती अभी भी आबाद है। पास ही में पहले साधु गंगादास रहते थे, जिनके नाम पर चौक गंगादास मोहल्ला बसा। खुशहाल पर्वत से नीचे की तरफ के खाली स्थान में मालवीय लोगों के डेरा जमा लेने से मालवीय नगर मोहल्ला बसा। इसी के पास दक्षिण की ओर पहले किसी सती (देवी) का चौरा (चबूतरा) था, जिसे सत्ती चौरा मोहल्ला कहा जाता है। राजा अहिच्छत्र के नाम पर अहियापुर मोहल्ला बसा। दरिया (यमुना) के किनारे होने के कारण मुगलकाल से ही दरियाबाद नाम से एक मोहल्ला आबाद है।

जहां अब कंपनीबाग है, वहां पहले सम्दाबाद व छीतपुर नाम के दो गांव थे। अंग्रेजों के विरुद्ध गदर से नाराज कंपनी की पलटन ने दोनों गांव तबाह कर दिया और वहां कंपनी बाग (अल्फ्रेड पार्क) की नींव रखी। इंग्लैंड से इलाहाबाद भेजे गए सर विलियम म्योर को इलाहाबाद बहुत सुहाया। माना जाता है कि उन्हीं के जमाने में इलाहाबाद सबसे ज्यादा चमका। हाईकोर्ट का विशाल भवन (पुराना), गवर्नमेंट प्रेस, रोमन कैथोलिक चर्च, पत्थर का बड़ा गिरजा (आल सेंट्स कैथेड्रल) तथा सबसे महत्वपूर्ण म्योर सेंट्रल कालेज उन्हीं के समय में बना। उनके नाम से म्योराबाद बस्ती भी बसाई गई। इलाहाबाद का सबसे पुराना अखबार पायनियर, जो बाद में लखनऊ चला गया, के संस्थापक सर जार्ज एलन व म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन रहे मिस्टर ममफोर्डगंज के नाम पर एलनगंज व ममफोर्डगंज मोहल्ले बसे।

मुगल शासक अकबर के उत्तराधिकारियों में औरंगजेब की ख्याति कट्टर इस्लामी शासक की रही। संत मलूकदास ने भी उसे एक नाम 'मीर राघव' दिया था। इसी के नाम पर चौक के बगल में सराय मीर खां मोहल्ला बसा, जो बाद में भगवान शंकर के नाम पर लोकनाथ कहा जाने लगा। शायद मीरापुर और मीरगंज मोहल्ले भी इसी नाम पर बने। परन्तु इसकी कोई लिखित दास्तान उपलब्ध नहीं है। चौक व जांस्टनगंज के बीच स्थित घंटाघर सन 1913 में यहां के रईस रायबहादुर लाला रामचरन दास तथा उनके भतीजे लाला विशेशर दास ने अपने-अपने पुत्र लाला मुन्नीलाल की याद में बनवाया था। घंटाघर ठीक उसी आकार व रंगरूप का बनवाया गया था जैसा कि दिसंबर सन 1910 में यमुना किनारे किले के पश्चिम में लगी प्रदर्शनी में बना था। दो सौ बीघा जमीन पर तीन महीने तक लगी रही इस राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी को देखने देश-विदेश के आठ लाख लोग आए थे। जिसमें जर्मनी के युवराज व हिंदुस्तान के लगभग सभी रियासतों के राजे-महराजे शामिल थे। माना जाता है कि कुंभ मेले के बाद इतनी भीड़ इसी प्रदर्शनी में देखी गई थी। प्रदर्शनी पर साढ़े इक्कीस लाख रुपये व्यय हुए थे। इसकी दास्तान 1931 के सरकारी गजेटियर में भी है। देश में इसी साल पहली बार हवाई जहाज उड़ाया गया था।

रायबहादुर के नाम पर बहादुरगंज मोहल्ला बसा तथा इस प्रांत के उप राज्यपाल रहे सर जार्ज हिवेट के नाम पर हिवेट रोड (विवेकानंद मार्ग) बनी। जबकि उस समय के ख्याति प्राप्त अंग्रेजी अखबार लीडर के नाम पर लीडर रोड (स्टेशन रोड) मोहल्ला बसा। इसका प्रकाशन वहीं होता था, जहां से आजकल दैनिक आज अखबार निकलता है। तब हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील और कुछ समय तक डिप्टी कलेक्टर रहे शहर के जैन रईस बाबू शिवचरण लाल के नाम पर एक सड़क राधा थिएटर मानसरोवर सिनेमा के सामने बनाई गई थी, जो अब भी इसी नाम से जानी जाती है। म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन रहे कामता प्रसाद कक्कड़ के नाम पर केपी कक्कड़ रोड (जीरो रोड) बनी। 1931 में रोशन बाग मोहल्ला नवाब सर बुलंद खां के नायब रोशन खां के नाम पर बसा। मुगल शासक जहांगीर ने अपनी पदवी बादशाही के नाम पर पहले बादशाही मंडी बनवाई थी जो अब मोहल्ला बन गया है।

सिविल लाइन पहले एक पिछड़ा हुआ इलाका था। इसका विकास कार्य 1858 में शुरू हुआ, जो 17 वर्षों तक चलता रहा। पहले इसे कैनिंग टाउन (कैनिंगटन) कहा जाता था। 1920-21 के पहले अंग्रेजी सेना के कर्नल व अन्य अधिकारी आनंद भवन के आसपास रहते थे, जिसे कर्नलगंज कहा जाने लगा। लेकिन बाद में उन्हें दूसरी जगह बसा दिया गया जिसे छावनी क्षेत्र (कैंटोनमेंट) कहा जाता है। यहां के तत्कालीन कमिश्नर मिस्टर थार्नहिल के नाम पर थार्नहिल रोड (दयानंद मार्ग) बना।

जयपुर के प्रसिद्ध राजा महाराज जयसिंह ने औरंगजेब द्वारा दी गई जागीर पर इलाहाबाद सहित कई जिलों में कटरा मोहल्ला बसाया। यहां के पुराने आमिल (दीवान) राजा नवल राय के नाम से कीडगंज व बैरहना के बीच मोहल्ला तालाब नवल राय बना। दीवान नवलराय लखनऊ की शिया रियासत के वजीर और सिपहसालार थे। अवध की सुबेदारी और हुकूमत के वे मजबूत स्तंभ थे और अवध के नवाब के भरोसेमंद सामंतों में गिने जाते थे। इन्होंने दारागंज में राधाकृष्ण का एक मंदिर बनवाया था। मंदिर में पूजा के लिए जिस खूबसूरत फुलवारी से फूल लिए जाते थे, वह फुलवारी रोड (कच्ची सड़क दारागंज) कहा जाता है।

नगर की प्रसिद्ध पथरचट्टी राम लीला कराने के लिए डेढ़ सौ साल पहले शहर के कारोबारियों में माने हुए सेठ लाला दत्ती लाल कपूर ने मुट्ठीगंज के आगे लंबी चौड़ी जमीन खरीदकर उसका नाम रामबाग रखा। बाद में इसी नाम से यहां एक मोहल्ला आबाद हुआ। मुगल काल व इससे पहले इलाहाबाद की ख्याति धर्म व मजहबी तौर पर ज्यादा थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि अकबर ने शहर के मंदिरों, मठों, अखाड़ों, मुस्लिम दायरों, दरगाहों, संतों, फकीरों, सूफियों व औघड़ों को देखकर पहले इसका नाम फकीराबाद रखा था। बाद में कुछ समय तक यह इलाहाबास (सरकारी गजेटियर में भी यही नाम मिलता है) नाम से जाना गया। मजहबी प्रेरणा से ही अकबर ने इस नगर को अंत में 'अल्लाह से आबाद ' कहा जो बाद में इलाहाबाद हो गया। तब से यही नाम बदस्तूर जारी है। धार्मिक वजहों से कुछ और मोहल्ले भी जाने गए। कल्याणी देवी, अलोपी देवी और सूर्यकुंड जैसे प्राचीन मंदिरों के नाम से कल्याणी देवी, अलोपीबाग और सूरजकुंड मोहल्ले बने। अत्रि ऋषि और अनसुइया आश्रम होने के कारण
अतरसुइया मोहल्ला बसा।

शहर के पुराने पुरोहित 72 वर्षीय पं. नवरंग महराज के अनुसार गंगागंज व बेनीगंज मोहल्ले करीब डेढ़ सौ साल पहले गंगेश्वर नाथ महादेव के भक्त पं. गंगाराम तिवारी व पं, बेनी प्रसाद के नाम पर बसाए गए थे। जबकि पुराने समय में यमुना के किनारे गउओं (गायों) का मेला लगने के कारण गऊघाट मोहल्ला बसा। शहर के दक्षिणी भाग का नाम नैनी पहाड़ों की देवी (नयना देवी) के नाम पर पड़ा।

सरकारी अभिलेखों के अनुसार 1868 व 1896 में यमुना पार में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। इसी दौरान कुमाऊं व गढ़वाल से कुछ पहाड़ी लोग यहां काम की तलाश में आए। वे अपने साथ नयना देवी की मूर्ति लाए और उसे यहीं स्थापित कर देवी के नाम पर नयनी (नैनी) कहने लगे। इसके पहले यहां सिर्फ जंगल था।
शहर के कुछ और मोहल्ले स्थानीय काम-धंधों के नाम से जाने जाते थे, जो अब भी जारी है। इनमें शामिल है ठठेरी बाजार (बर्तन), घास सट्टी, भूसौली (भूसा) टोला, गाड़ीवान टोला, बजाजा (कपड़ा) पट्टी, इत्यादि

Thursday, 21 December 2017

BHU में "समाजवादी" आंदोलन

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास में जब जब इन कथित समाजवादी नेताओं द्वारा आंदोलन हुए हुए है ये तो हिंसा की बलि चले हैं या फिर हिंसा से ही शुरू हुए है
समाजवादी के नाम पर चल रहे इस अराजकवादी गतिविधि को कुछ लोग आंदोलन ठहरा रहे हैं
इसीलिए मैने भी इसे आंदोलन ही कहा है
लेकिन अगर इनके नजरिए से देखा जाए तो अगर ये आंदोलन है तो नक्सलवाद भी आंदोलन है एवं कश्मीरी पत्थरबाज आंदोलनकारी...

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिदृश्य में समाजवादी पार्टी का छात्र ईकाई "समाजवादी छात्र सभा " लंबे समय से ही अराजक लोगो द्वारा समर्थित रही है
अब गिरफ्तार हुए समाजवादी नेता आशुतोष सिंह का ही उदाहरण ले तो हम यह पाते हैं कि उन पर संगीन धाराओं में लगभग आठ मुकदमें चल रहे हैं  रंगदारी, लूट, धमकी, मारपीट, सेवन सीएलए,युपी चिकित्सा सेवा कर्मी चिकित्सा परिचर्या सेवा संस्थान अधिनियम प्रमुख हैं एवं वर्ष 2017 में में हुए हर विवाद में वो प्रमुख चेहरों में रहे हैं एवं परिषर में जमकर अराजकता फैलाई है
चाहें वो 10 नवंबर के आईआईटी बीएचयु के राजपूताना ग्राउंड के बाहर मारपीट व लूटपाट हो या अब की घटना घर घटना के तार समाजवादी छात्र सभा से जुड़ रहे हैं
इस ताजा घटना के संदर्भ में जिन छात्रों के नाम पर प्राथमिकी दर्ज की गई है एवं आशुतोष का समर्थक होने का दावा किया जा रहा है उनका भी रिकार्ड विश्वविद्यालय में ठीक नहीं रहा है एक समाचार पत्र के अनुसार छात्रा के साथ हुई छेड़खानी के बाद 21-23 सितम्बर के गए बवाल में भी यही चेहरे शामिल थे ये वही लोग थे जो बीएचयु मेन गेट पर छेड़खानी के विरोध में धरना कर रहीं छात्राओं के साथ गाली गलौज भी किया था एवं धरना समाप्त करने को कहा था
जब छात्राओं पर इनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ तो वे अभद्रता पर उतर आए और गाली गलौज किया था
एक तरफ ये गाली - गलौज कर रहे थे तो दूसरी तरफ इनके नेता श्री अखिलश यादव जी छात्राओं के समर्थन में लगातार बयान दे रहे थे अब ये तो नेता जी का "पाखंड" ही कहा जाएगा
अगर ये पाखंड नहीं है तो समाजवादी छात्र सभा को इससे किनारा कर लेना चाहिए था लेकिन अब तक ऐसा कोई बयान सामने नहीं आया है
छात्रों द्वारा कयास यह भी लगाया जा रहा है कि यह सब "नेताजी" जी की सह पर ही हुआ है चर्चा यह भी है इस मामले पर नेता जी क्या बयान देते हैं ये देखें लायक होगा
वैसे एक समाचार पत्र की मानें को यह पूर्व सपा सरकार के एक मंत्री जी के इशारे पर हुआ है
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता नें कहा है कि अराजक तत्वों  को बख्शा नहीं जाएगा एवं उत्पात मचाने वालों को चिन्हित कर कारवाई की जाएगी
खैर अब तो समय ही बताएगा की ये  बयान सत्य सिद्ध होगा या फिर खोखली बयानबाजी बन कर ही रह जाएगा
(ये मेरे निजी विचार हैं)

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय :परिदृश्य एवं चिंतन

विगत कुछ समय से जिस प्रकार से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सुलग रहा है यह निश्चित ही चिंतन का विषय है
चिंतन विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए, चिंतन UGC के लिए, चिंतन सरकार के लिए, चिंतन छात्रों के लिए,चिंतन छात्रों के भविष्य के लिए, चिंतन अभिभावकों के लिए...
ये समग्र चिंतन का विषय इस लिए भी है क्योंकि जिस विश्वविद्यालय को राष्ट्रवाद की नर्सरी कहा जाता हो एवं जिस मिट्टी के कण कण में महामना के विचार बसते हो वहाँ जब पढाई की जगह लड़ाई होने लगे तो उसे किसी नजरिए से उचित नहीं ठहराया जा सकता...
अराजक तत्वों द्वारा कभी बमबाजी करना तो कभी आगजनी करना, कभी पत्थरबाजी करना ,तो कभी तोड़फोड़ करना अब विश्वविद्यालय में शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गया है यह कही न कहीं विश्वविद्यालय प्रशासन की निकृष्टता को प्रदर्शित करता है ऐसी घटनाओं प्रशासनिक लापरवाही कहके हम टाल भी नहीं सकते क्युकि चीफ प्राक्टर के बयान के अनुसार हर द्वार पर 20 -30 अराजक तत्व मौजूद थे...
सवाल तो ये भी उठता है कि प्राक्टोरियल बोर्ड की 1200 की भारी भरकम फौज तब क्या कर रही थी..
हर चौराहे पर मौजूद गार्ड क्या कर रहे थे कि सुचना भी आफिस तक न पहुचीं, 2 घंटे तक विश्वविद्यालय प्रशासन मुक बन कर घटना की मौन स्वीकृति देता रहा
अगर विश्वविद्यालय अराजक तत्वों द्वारा हाईजैक कर लिया जाता है एवं विश्वविद्यालय के सुरक्षा तंत्र को भनक भी नहीं लगती है या ये कहा जाए कि सुरक्षा तंत्र निष्क्रिय होकर किसी बड़े घटना का इंतजार कर रहा था
वैसे छात्रों के बीच चल रहे सुगबुगाहट को देखा जाए तो चर्चा यह भी है कि इसमें सुरक्षा तंत्र का भी पुरा सहयोग रहा
आज की जरूरत यह है कि प्राक्टोरियल बोर्ड ईमानदारी से अपना काम करे एवं उपद्रवीयों से सख्ती से निपटे एवं ऐसी घटनाओं को विश्वविद्यालय परिषर में रोकना हम आम छात्रो की भी जिम्मेदारी है क्योंकि विश्वविद्यालय की संपत्ति राष्ट्र की संपति है एवं इसकी सुरक्षा हम सब की जिम्मेदारी है
 ( ये मेरे निजी विचार हैं)

आप सभी जरूर पढें ...  आर्मी कोर्ट रूम में आज एक केस अनोखा अड़ा था! छाती तान अफसरों के आगे फौजी बलवान खड़ा था!! बिन हुक्म बलवान तूने ...