Monday, 13 February 2017

वेलेंटाइन डे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत को याद करें


अब भारत में भी 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे धूमधाम से मनाया जाता है। प्रेमी-प्रेमिकाओं को लगता है कि 14 फरवरी का दिन प्यार का इजहार करने वाला है, इसलिए स्कूल-कॉलेज में पढऩे वाले विद्यार्थी या फिर दफ्तरों में काम करने वाले युवा एक दूसरे को वेलेंटाइन डे का गिफ्ट देते हैं। असल में 14 फरवरी का दिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का माल बेचाने का दिन है।

जिस तरह से भारत में वेलेंटाइन डे को मनाने का चलन हुआ है, उससे विभिन्न कंपनियां अपना करोड़ों रुपए का माल बेच रही हैं। वैसे भी वेलेंटाइन डे जैसे कृत्य हमारी सनातन संस्कृति के खिलाफ हैं। सब जानते हैं कि भारत के इतिहास में 14 फरवरी का दिन इसलिए भी महत्त्व रखता है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को लाहौर की अदालत ने आज ही के दिन मौत की सजा सुनाई थी।
देश के युवाओं को पश्चिम की संस्कृति का वेलेंटाइन डे मानने की बजाए हमारे क्रांतिकारियों की शहादत को याद करना चाहिए। यदि देश भक्त लोग फांसी के फंदे पर नहीं झुलते तो आज हम वेलेंटाइन डे भी नहीं मना पाते। अच्छा हो 14 फरवरी को युवापीढ़ी अपने माता-पिता की सेवा करने का संकल्प लें होटल, रेस्टोरेंट, रिसोर्ट आदि में जाकर प्यार मोहब्बत की बातें करने से कुछ भी हांसिल नहीं होगा।

Wednesday, 1 February 2017

हिन्दु .... आज की जरूरत

आज कल, जिधर देखिये लोग केरल और बंगाल के हालातो पर बेहद चिंता में है, लोग उसमे कश्मीर ढूढ़ने लगे है। अब क्योंकि केरल और बंगाल में मेन स्ट्रीम मिडिया को कुछ दिखता ही नही है इसलिए लोग अपने आक्रोश को सोशल मिडिया पर अभिव्यक्त कर रहे है। आक्रोशित लोग, इन हालातो के लिए जहां सेक्युलरो और वामपंथियों को गरिया रहे है वही भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी को भी उलाहना देने से नही चूक रहे है।
आखिर हिंदुओं का यह आक्रोश किस लिए है? क्या यह आक्रोश खुद के असहाय होने की स्वीकारिता से मुँह छुपाने के लिए तो नही है? मुझे लगता है की हमारा यह आक्रोश दुसरो पर न होकर खुद पर ही है। आज हमे जो एक कटु सत्य सामने खड़ा दिख रहा है यह तो पहले ही से था, जिसको हमने अपनी अज्ञानता में या फिर यह सोंच कर की यह काम दूसरे का है, नज़रन्दाज़ किया हुआ था।
आखिर केरल में हिन्दू क्यों नही कटेगा?
यह वही केरल है जहाँ 95 साल पहले, 1922 में मालाबार में मोपलाह का विद्रोह, हुआ था और केरला में इस्लामिक राज्य बना दिया गया था। उस इस्लामीकरण के परिणाम स्वरूप, हिन्दू स्त्रियों का बलत्कार, बलात् धर्मान्तरण और इसका विरोध करने वाले हिंदुओं की व्यापक स्तर पर हत्या किया गया था। इसी केरल में, भारत का बंटवारा करवाने वाली पार्टी मुस्लिम लीग के रुके हुए धड़े ने 1948 में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग(IUML) पार्टी बनाई, जिस के साथ कांग्रेस ने मिल कर 1960 में सरकार बनाई थी। इसी केरल में विश्व में पहली बार लोकतान्त्रिक तरीके से वामपंथी सरकार बनी थी। वामपंथियों से शुरवाती विरोध के बाद इसी इस्लामिक कट्टरपंधी दल IUML ने 1967 में वामपंथियों सीपीआई (मार्क्सिस्ट) के साथ केरल में सरकार बनाई थी। आज भी IUML सीपीआई (मार्क्सिस्ट) और कांग्रेस के साथ यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट(UDF) का हिस्सा है और 1979 में एक बार IUML का मोहम्मद कोया, केरल का मुख्यमंत्री भी बन चुका है। जिस राज्य में इस्लामिक राज्य का प्रयोग हो चूका हो, जिस राज्य में स्वतंत्रता के बाद वामपंथी सरकार बनी हो, जिस राज्य में कांग्रेस मुस्लिम लीग और वामपंथ का गठबंधन पिछले 50 वर्षो से हो और जिस राज्य में सोनिया गाँधी के राजनैतिक क्षितिज में आने के बाद से इस गठबंधन को चर्च का पूरा सहयोग हो, वहां हिन्दू नही कटेगा तो फिर और कहा कटेगा?
हाँ, केरल के बाद एक जगह और है बंगाल जहाँ हिन्दू कटेगा। जिस राज्य में जहाँ अगस्त 1946 को कलकत्ता में मुस्लिम लीग के अवाहन पर, डायरेक्ट एक्शन डे के नाम पर, इस्लाम के उन्माद में हज़ारो हिन्दू खत्म कर दिए गया हो (जिसे आज इतिहास Great Calcutta Killing और The Week Of The Long Knives के नाम से जानता है) और जिस राज्य में अक्टूबर-नवम्बर 1946 में जहाँ नोआखाली का कत्लेआम को हुआ हो, जिसमे 90 % हिन्दू जनसख्या ने बलात्कार, बलात् धर्मान्तरण और हत्या को भोगा हुआ हो, उसी राज्य के प्रबुद्ध हिन्दू 6 महीने के अंदर ही, इन कत्ले आम के जिम्मेदार बंगाल के मुख्यमंत्री मुस्लिम लीग के सुहरावर्दी के साथ मिल कर मार्च अप्रैल 1947 में, 'यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ बंगाल', भारत से अलग एक नए राष्ट्र की मांग की हो, यदि यहां हिन्दू नही कटेगा तो कहा कटेगा? उस पर सोने पर सुहागा यह की वामपंथियों और नक्सलियों की जड़े यहां ऐसी जमी की तीन दशको तक उन्होंने निरन्तर यहां राज किया है और इन्ही 3 दशको की पीढ़ी को साथ लिए ममता बनर्जी ऐसी इस्लामिक परस्त बंगाल पर आज राज्य कर रही है।
इतिहास के इस पुरे वाकये में हिन्दू की राजनैतिक शक्ति मौन रही थी। उस वक्त गांधी जी की अहिंसा मौन थी। सत्ता हर कीमत पर अपने पास होने की लालसा में कांग्रेस मौन थी। भारत को आज़ाद करने की मजबूरी से उठे खीज से ब्रिटिश राज्य की सरकार मौन थी। अंग्रेजो के दलाल वामपंथी, भारत में लाल क्रांति लाने के उद्देश्य से मौन थे।
जैसे तब सब मौन थे, वैसे आज सब मौन है। अहिंसा,शांति और सेकुलरिता के पथिक, अपनी अपनी चरित्रहीनता को छुपाने के लिए मौन है। कांग्रेस और विपक्ष, सत्ता हर कीमत की लालसा में मौन है। वामपंथी भारत में अपने वजूद बनाये रखने के लिए मौन है। मीडिया अपने दूर देशो में बैठे हाकिमों के स्वार्थ के लिए मौन है। हिन्दू इस लिए मौन है क्योंकि वह अपने वजूद की रक्षा के लिए सरकार को सिर्फ जिम्मेदार मानते हुए उसकी तरफ ताक रहा है या फिर वह अपने पडोसी का कुछ करने का इंतज़ार कर रहा है।
हिंदुओं को यह मौन तोडना होगा और एक वर्ग को सरकार और हिंदुत्व के अन्य मंचो से आगे बढ़ते हुए, इतिहास से सीख कर 1920 के फिलिस्तीन के यहूदियों का अनुसरण करना होगा।
1920 में, जब ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण के फिलिस्तीनी क्षेत्र में बसी यहूदियों की बस्ती में अरब के लोग लूटपाट और हत्याए कर रहे थे तब ब्रिटिश प्रशासन की अकर्मण्यता से असुरक्षित यहूदीयों की रक्षा के लिए 100 यहूदियों ने हगनह(Haganah) का गठन किया था। जिसने ब्रटिश कानून से आगे बढ़ते हुए खुद की रक्षा के लिए शस्त्र उठाये थे। इसमें बाद में लोग जुड़ते चले गए थे। इसी तर्ज़ पर बाद में 1931 में इटज़ेल(Etzel), 1940 में लेही(Lehi) और 1941 में पलमच(Palmach) संघठन बने और यहूदियों ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी थी।1948 में जब इजराइल को आज़ादी मिली और ब्रिटिश सेना ने इलाके को छोड़ दिया तब सारे अरब राष्ट्रों ने मिल कर इजराइल पर कब्जा करने के लिए आक्रमण किया था, तब यही सब संग़ठन, एक में विलय होकर इजराइल की सेना बने थे और अरबो को उन्होंने हरा दिया था।
इजराइल और उसका यहूदी आज जिन्दा है तो इसलिए ज़िंदा है क्योंकि 1920 में 100 यहूदियों ने हगनह(Haganah) बनाया.⛳ *उठो जागो अपने नाम में जातिसूचक शब्द लगाना छोड़ दो.और चार बच्चे पैदा करके धर्म की सेवा करो.अभी नही तो कभी नही.

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